शब्द की उत्पत्ति हुई। अकबर के समय में जब अनेक देशों
से अनेक जातियों के लोग देहली में एकत्र होने लगे और प्रतिदिन के हेलमेल से जब उन सबको परस्पर एक दूसरेसे बातचीत करने का काम पड़ने लगा तब एक नये प्रकार की बोली प्रचार में आई और वही क्रम क्रम से उर्दू के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
अब प्रश्न यह है कि उर्दू की कविता कब से होने लगी। यह प्रश्न नहीं है कि फारसी मिली हुई हिन्दी कब से बोली जाने लगी, क्योंकि उसका कुछ कुछ प्रारम्भ नवीं शताब्दी ही में होगया था। और न यही प्रश्न है कि फ़ारसी अक्षरों में उर्दू कब से लिखी जाने लगी, क्योंकि किसी भाषा की लिपि का उत्पन्न होना गौण विषय है ; मुख्य विषय स्वयं उस भाषा का उत्पन्न होना है। प्रश्न यह है कि फ़ारसी के छन्दःशास्त्र के अनुसार, पहले पहल, हिन्दी में कब पद्यरचना हुई; क्योंकि उसी समय उस प्रकार के साहित्य की उत्पत्ति समझनी चाहिए जिस प्रकार के साहित्य को हम उर्दू का साहित्य कहते हैं। इस प्रकार की छन्दोरचना सोलहवीं शताब्दी में हुई। अर्थात् सोलहवीं शताब्दी की हिन्दी की एक शाखा हिन्दी से अलग होकर, और फ़ारसी के शब्दों को अपना साथी बना कर, उसी भाषा के छन्दोरूपी वस्त्र धारण करके पद्य के आकार में प्रकट हुई।
उर्दू के सम्बन्ध में हमको, यहां पर, कुछ विस्तार करना पड़ा। यह विषय विचारणीय था; इसीलिए हमको यहां