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साहित्यालाप


पर इतना लिखना पड़ा। उर्दू का साहित्य भी, एक प्रकार से, हिन्दी ही का साहित्य है। अतएव, आगे चलकर, हमको इस साहित्य पर अभी कुछ और लिखना पड़ेगा।

पूर्वोक्त कथन से यह सूचित हुआ कि माध्यमिक काल में हिन्दी साहित्य के दो भेद हो गये---एक ब्रजभाषा का साहित्य ; दूसरा उर्दू का साहित्य। इस काल में भी, उर्दू में दो एक ग्रन्थों को छोड़ कर, गद्य का कोई ग्रन्थ शुद्ध हिन्दी में नहीं बना। समस्त साहित्य छन्दोबद्ध ही रहा। विशेषता इस काल में इतनी हुई कि चरित, आख्यायिका और मनोरञ्जक कहानियों की उत्पत्ति कहीं कहीं होने लगी।

हिन्दी के आधुनिक साहित्य का जन्म उन्नीसवीं शताब्दी में हुआ समझना चाहिए। इस काल में मुख्य बात यह हुई कि लल्लूजी और सदल मिश्र ने गद्य में ग्रन्थ लिखने की परिपाटी प्रचलित की। लल्लू लाल और सदल मिश्र ने इस रचना का आरम्भ अवश्य किया और उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। परन्तु विशेष धन्यवाद के पात्र फोर्टविलियम कालेज के अधिकारी डाक्टर गिलक्राइस्ट हैं। उन्हींने कई हिन्दी और उर्दू के विद्वानों को अपने आश्रय में रक्खा और उनसे अच्छे अच्छे उपयोगी ग्रन्थ गद्य में लिखवाये। अतएव हम लोग,गद्य के सम्बन्ध में, पूर्वोक्त डाक्टर साहब के विशेष कृतज्ञ हैं।

आधुनिक हिन्दी साहित्य के सम्बन्ध में जो कुछ हुआ है और जो कुछ हो रहा है वह हिन्दी के प्रेमियों से छिपा नहीं। इसलिए इस निबन्ध में हम उसका विचार नहीं करना चाहते।