पृष्ठ:साहित्यालोचन.pdf/२९१

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साहित्यालोचन इसकी कथा बहुत उन्नत नहीं होती और इसका विषय कल्पित होता है, किसी पुराण आदि से नहीं लिया जाता। इसमै श्रृंगार रत्त प्रधान रहता है। (३) भाण- -इसमे धूतों और दुष्टो का चरिब रहता है और इससे दर्शकों को खूब हँसाया जाता है। इसमें कोई व्यक्ति अपने अधया दूसरे के अनुभव की पातं आकाश की ओर मुंह उठाकर कहता और आप ही इन बातों का उत्तर भी देता चलना है। (४) च्यायोग- यह वीर रस-प्रधान होता है और इसमें स्त्रियाँ विलकुल नहीं अथषा बटुत कम होती हैं। इसमें एक भी अंक होता है और आदि से अंत तक एक ही कार्य या उद्देश्य से सब क्रियाएँ होती हैं और एक ही दिन की कथा का वर्णन होता है । (५) समवकार-इसमें तोन अंक और १२ तक नायक होते हैं और सब नागको की क्रियाओं का पाल पृथक् पृथक होता है। इसमै वीर रस प्रधान होता है। (६) दिय-यह समयकार की अपेक्षा अधिक भयानक होता है। इसमें चार अंक और २६ तक नायक होते हैं ओ प्रायः दैत्य, राक्षस, गंधर्व, भूत, प्रेत आदि तक होते हैं। इसमें अद्भुत और रौद्र रस प्रधान होते है। (७) इहामृग---इसमें एक धीरोदात्त नायक और उसका प्रतिपक्षी पक प्रतिनायक होता है। दोनों एक दूसरे का अपकार करने का यल करते हैं। नायिका के लिये उनमे परस्पर युद्ध भी होता है। नायक को नायिका तो नहीं मिलती, पर वह मरने से बच जाता है। (1) अंक- यह करुण रस प्रधान होता