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पृष्ठ:साहित्यालोचन.pdf/२९२

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इश्प-काभ्य का विवेचन है और इसमें खियों के शोक का विशेष वर्णन रहता है। इसमें एक ही अंक होता है।(6) वीथी-यह माण से बहुत कुछ मिलती जुलती होती है और इसमें एक ही शंक तथा एक ही मायक होता है। इसमें भंगार रस तथा विनोद और आवर्य- जनक बातों की प्रधानता रहती है। (१०) प्रहसन-यह भी प्रायः माण से मिलता जुलता होता है और इसमें कल्पित निंद्य लोगो का चरित्र दिखाया जाता है। यह हास्य रस मधान होता है, पर इससे लोगों को उपदेश भी मिलता है। उपकाक के हमारे यहाँ १% भेद माने गए हैं जिसके नाम इस प्रकार है--साटिका, नाटक, गोष्टी, सहक, नायरासक, प्रस्थाम, उसाप्य, काव्य, प्रखण, रासक, संप्टाएक, श्रीगवित, शिल्पक, बिलासिका, दुर्मसिका, प्रकर- णिका, हनीश और भाणिका हमारे यहाँ के आचार्यों ने केवल नाटक के काम के लिये नायकों और नायिकाओं के अनेक मेद किए। और वृत्तियाँ, अलंकार तथा खक्षण आदि भी अलग नियत किया है। उन्होंने यह भी बतलाया है कि किन पात्रों को किन भाषाओं का प्रयोग करना चाहिए और किसे किस प्रकार मंशेधन करना चाहिए । हमारे यहाँ यह भी निर्णय किया गया है कि कौन कौन से दृश्य रंगशाला में नहीं दिलाने काहिएँ । जैसे-लेची यात्रा, हत्या, मुख, राज्य- क्रान्ति, किलो आदि का विराध, भोजन, मान, संमोग, नायक या नायिका आदि को मृत्यु इत्यादि । इन सच का पूरा पूर अपरूपक