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ग्राम्य गीतों में समाज का चित्र


केवल इसीलिए आनन्द होता है कि इससे देवरानियो, जेठानियो और गोतिनो का घमण्ड टूटेगा। उसका पति भी उससे प्रेम ना करता है, मगर जब सन्तान होने मे देर होती है, तो कोसने लगता है । जो गीत जन्म, मुण्डन विवाह सभी उत्सवो मे गाये जाते है, और प्रत्येक छोटे बडे घर मे गाये जाते है, उनमे अक्सर समाज और घर के यही चित्र दिखाये जाते हैं, और इसका हमारे घर और जीवन पर अप्रत्यक्ष रूप से असर पड़ना स्वाभाविक है । जब लडकी मे बात समझने की शक्ति आ जाती है, तभी से उसे ननद के नाम से घृणा होने लगती है । ननद से उसे किसी तरह की सहानुभूति, सहायता या सहयोग की आशा नहीं होती । वह मन मे ईश्वर से मनाती है कि उसका साबिका किसी ननद से न पड़े। ससुराल जाते समय उसे सबसे बड़ी चिन्ता यही होती है कि वहाँ दुष्टा ननद के दर्शन होगे, जो उसके लिए छुरी तेज किये बैठी है। जब मन मे ऐसी भावनाएँ भरी हुई है, तो ननद की ओर से कोई छोटी- सी शिकायत हो जाने पर भी भावज उसे अपनी बैरिन समझ लेती है और दोनो मे वह जलन शुरू हो जाती है, जो कभी शान्त नहीं होती। अाज हमारे घरो मे ऐसी बहुत कम मिसाले मिलेगी, जहाँ ननद भावज मे प्रेम हो । सास और बहू मे जो मन मुटाव प्रायः देखने में आता है, उसका सूत्र भी इन्हीं गीतो मे मिलता है, और यह भाव उस वक्त दिल मे जम जाते हैं, जब हृदय कोमल और ग्रहणशील होता है और इन पत्थर की लकीरों को मिटाना कठिन होता है । इस तरह के गीत एक तरह से दिलो मे कटुता और जलन की बारूद जमा कर देते है, जो केवल एक चिनगारी के पड़ जाने से भड़क उठती है । युवती बधू को ससुराल मे चारो तरफ दुश्मन ही दुश्मन नजर आते हैं, जो मानो अपने अपने हथियार तेज किये उस पर घात लगाये बैठे हैं। फिर क्यो न हमारे घरो मे अशान्ति और कलह हो । बहू सुख-नींद सोई हुई है । सास और ननद दोनो तड़प तड़पकर बोलती हैं-बहू तुझे क्या गुमान हो गया है, जो सुख- नीद सो