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राष्ट्रभाषा हिन्दी और उसकी समस्याऍ


और बचपन से फारसी का अभ्यास करने के कारण उर्दू मेरे लिए जितनी स्वाभाविक है, उतनो हिन्दी नही है । मै पूछता हूँ, आप इसे हिन्दी की गर्दनजदनी समझते है ? क्या आपको मालूम है, और नहीं है तो होना चाहिए, कि हिन्दी का सबसे पहला शायर, जिसने हिन्दी का साहित्यिक बीज बोया (व्यावहारिक बीज सदियो पहले पड चुका था) वह अमीर खुसरो था ? क्या आपको मालूम है, कम से कम पाँच सौ मुसलमान शायरो ने हिन्दी को अपनी कविता से धनी बनाया है, जिनमे कई तो चोटी के शायर हैं ? क्या आपको मालूम है, अकबर, जहाँगीर और औरगजेब तक हिन्दी की कविता का जौक रखते थे और औरगजेब ने ही अामो का नाम 'रसना-विलास' और 'सुधा रस' रखा था ? क्या आपको मालूम है, आज भी हसरत और हफीज जालन्धरी जैसे कवि कभी-कभी हिन्दी मे तबााजमाइ करते हैं ? क्या आपको मालूम है हिन्दी मे हजारो शब्द, हजारों क्रियाएँ अरबी और फारसी से आयी है और ससुराल में आकर घर की देवी हो गयी है ? अगर यह मालूम होने पर भी आप हिन्दी को उदु से अलग समझते हैं, तो आप देश के साथ और अपने साथ बेइन्साफो करते है । उर्दू शब्द कब और कहाँ उत्पन्न हुआ, इसकी काई तारीखो सनद नहीं मिलती । क्या आप समझते है वह 'बडा खराब आदमी है' और वह 'बडा दुर्जन मनुष्य है' दो अलग भाषाएँ हैं ? हिन्दुओ को 'खराब' भी अच्छा लगता है और 'श्रादमी' तो अपना भाई हो है । फिर मुसलमान का 'दुर्जन' क्यो बुरा लगे, और 'मनुष्य' क्यो शत्रु-सा दीखे ? हमारी कौमो भाषा मे दुर्जन और सज्जन, उम्दा और खराब दोनों के लिये स्थान है, वहाँ तक जहाँ तक कि उसकी सुबोधता मे बावा नहीं पडती । इसक अागे हम न उर्दू के दास्त है, न हिन्दी के । मजा यह कि 'हिन्दी' मुसलमानों का दिया हुआ नाम है और अभी पचास साल पहले तक जिसे आज उर्दू कहा जा रहा है, उसे मुसल- मान भी हिन्दी कहते थे । और आज 'हिन्दी' मरदूद है । क्या आपको नजर नहीं आता, कि 'हिन्दी' एक स्वाभाविक नाम है ? इगलैंडवाले