साहित्य की कौन सी भाषा है ? बाजार मे, लश्कर में, सामान्य व्यवहार मे सरल हिन्दी, सरल उर्दू के नजदीक आ सकती है; परन्तु जहाँ साहित्यिक वाक्पटुता, कविता, अर्थ सूचकता या अर्थ गम्भीरता का सवाल आयेगा, वहाँ यह भाषा निकम्मी हो जाती है। वहाँ प्रत्येक लेखक अपनी प्यारी मे से आवश्यक और अपेक्षित समृद्धि ले लेता है । इसमे निराशा के लिए जगह नहीं । हिन्दू मुसलमानो को एक साहित्य की भाषा पैदा कर छटकारा पाना होगा । प्रत्येक पक्ष अपनी विशेषता खोकर या छोड़. कर आगे न बढ़े, दोनो पक्ष एक दूसरे की खूबियाँ अपना कर नई भाषा की सृष्टि कगसकेगे।
इसके लिए जितना धीरज चाहिए, उतनी ही उदारता' भी। संसार की बडी बड़ी वस्तुये लम्बी मुद्दत और भगीरथ प्रयत्नो के बाद हो बनती है।
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हिन्दी-साहित्य सम्मेलन
नागपुर मे हिन्दी-साहित्य सम्मेलन की काफी धूम-धाम रही । मेहमानों के ठहरने का इन्तजाम ऐग्रिकल्चर-कालेज के होस्टल मे किया गया था। आराम की सभी चीजें मौजूद थीं। भोजन भी किफायत से और मुनासिब दामो मिलता था । सम्मेलन का पंडाल भी वहाँ से थोड़ी ही दूर पर था। मच पर तो शामियाना तना हुआ था पर श्रोताओ के लिए खुले मे फर्श का प्रबन्ध था । लाउड स्पीकर भी लगा हुआ था। फाटक पर और रास्ते के दोनो तरफ़ बिजली के रंगीन बल्ब लगा दिये गये थे। नेताओं का ऐसा जमघट सम्मेलन के किसी जलसे मे शायद ही हुआ हो। महात्माजी, पंडित जवाहरलालजी नेहरू, बाबू राजेन्द्र प्रसाद, सरदार साहब श्रीराजगोपालाचार्य आदि प्रतिष्ठित नेताओं ने सम्मेलन को गौरव