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साहित्य का उद्देश्य

कितनी और कैसी शिक्षा पाई ? उसके भाई-बहन हैं या नहीं ? उसके मित्र किस तरह के लोग है ? सम्भव है, मै इन गौण बातो को अपनी कहानी मे न लिखू ; लेकिन इनका परिचय होना आवश्यक है। इन ब्योरो से चरित्र-चित्रण सजीव हो जाता है । जब तक लेखक को ये बाते न मालम हों, वह चरित्र के विषय मे कोई दृढ़ कल्पना नही कर सकता, न उसको भिन्न भिन्न परिस्थितियों मे रखकर स्वाभाविक रूप से उसका सचालन कर सकता है । वह हमेशा दुबधे मे पडा रहेगा।

प्रश्न-चरित्रों के वर्णन मे आप किस तरह की बाते लिखना अनुकूल समझते है ?

उत्तर-मै उसकी वेश-भूषा, रग-रूप, आकार-प्रकार आदि गौण बातो का लिखना अनावश्यक समझता हूँ। मै केवल ऐसी स्पष्ट और प्रत्यक्ष बाते लिखता हूँ, जिनसे पाठक के सामने एक चित्र खड़ा हो सके । बहुत-सी गौण बातें लिखने से चित्र स्पष्ट होने की जगह और धुंधला हो जाता है। मुझे खूब याद है कि बालजक ने अपने एक उपन्यास मे एक चचल रमणी के विषय मे लिखा था, कि 'वह तीतरी की भॉति कमरे मे आई। उसके सॉवले रग पर लाल कपडे खूब खिलते थे। इस वाक्य से उस स्त्री का चित्र मेरी आँखों के सामने फिरने लगाः लेकिन बालजक को इतने ही से सन्तोष न हुआ। उसने डेढ़ पृष्ठ उस चरित्र के विषय मे छोटी-छोटी बाते लिखने मे रॅग दिये । फल यह हुआ कि जो चित्र मेरी कल्पना मे खडा हुआ था, वह धुंधला होते-होते बिलकुल गायब हो गया । वास्तव मे किसी चरित्र का परिचय कराने के लिए केवल एक विशेष लक्षण काफी है । दूसरी बाते अवसर पड़ने पर आगे चलकर बयान की जा सकती हैं।

प्रश्न-एक बात और । क्या आप अपनी गल्पो मे दृष्टिकोण का परिवर्तन भी कभी करते हैं ? अर्थात्-कथा के विकास और प्रगति पर कभी एक चरित्र की दृष्टि से और कभी दूसरे चरित्र की दृष्टि से नजर डालते हैं या नहीं ?