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रूसी साहित्य और हिन्दी

 

उपन्यास और गल्प के क्षेत्र में, जो गद्य-साहित्य के मुख्य अंग हैं, समस्त संसार ने रूस का लोहा मान लिया है, और फ्रान्स के सिवा और कोई ऐसा राष्ट्र नहीं है, जो इस विषय में रूस का मुकाबला कर सके। फ्रान्स में बालजाक, अनातोल फ्रान्स, रोमा रोलाँ, मोपासाँ आदि संसार प्रसिद्ध नाम हैं, तो रूस में टालस्टाय, मैक्सिम गोर्की, तुर्गनीव, चेखाव, डास्टावेस्की श्रादि भी उतने ही प्रसिद्ध हैं, और संसार के किसी भी साहित्य में इतने उज्ज्वल नक्षत्रों का समूह मुशकिल से मिलेगा। एक समय था कि हिन्दीं में रेनाल्ड के उपन्यासों की धूम थी। हिन्दी और उर्दू दोनो ही रेनाल्ड की पुस्तकों का अनुवाद करके अपने को धन्य समझ रहे थे। डिकेंस, थैकरे, लैम्ब, रस्किन आदि को किसी ने पूछा तक नहीं। पर अब जनता की रुचि बदल गई, और यद्यपि अब भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो चोरी, जिना और डाके आदि के वृत्तान्तों में आनन्द पाते हैं लेकिन साहित्य की रुचि में कुछ परिष्कार अवश्य हुआ है और रूसी साहित्य से लोगों को कुछ रुचि हो गई है। आज चेखाव की कहानियाँ पत्रों में बड़े आदर से स्थान पाती हैं और कई बड़े-बड़े रूसी उपन्यासों का अनुवाद हो चुका है। टालस्टाय का तो शायद कोई बड़ा उपन्यास ऐसा नहीं रहा, जिसका अनुवाद न हो गया हो। गोर्की की कम से कम दो पुस्तकों का अनुवाद निकल चुका है। तुर्गनीव के Father & Son का 'पिता और पुत्र' के नाम से अभी हाल में दिल्ली से अनुवाद प्रकाशित हुआ है। टालस्टाय की 'अन्ना' का अनुवाद काशी

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