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सहित्य का उदेश्य

हिन्दी में इस नवीन शैली की कहानियो का प्रचार अभी थोडे ही दिनो से हुआ है, पर इन थोडे ही दिनों मे इसने साहित्य के अन्य सभी अङ्गों पर अपना सिक्का जमा लिया है। किसी पत्र को उठा लीजिए, उसमे कहानियों ही की प्रधानता होगी । हाँ जो पत्र किसी विशेष नीति या उद्देश्य से निकाले जाते है उनमे कहानियो का स्थान नहीं रहता। जब डाकिया कोई पत्रिका लाता है, तो हम सबसे पहले उसकी कहानियाँ पढ़ना शुरू करते हैं। इनसे हमारी वह क्षुधा तो नही मिटती, जो इच्छा- पूर्ण भोजन चाहती है पर फलो और मिठाइयो की जो तुधा हमे सदैव बनी रहती है, वह अवश्य कहानियो से तृप्त हो जाती है। हमारा खयाल है कि कहानियों ने अपने सार्वभौम अाकर्षण के कारण, ससार के प्राणियो को एक दूसरे से जितना निकट कर दिया है, उनमे जो एकात्मभाव उत्पन्न कर दिया है, उतना और किसी चीज ने नहीं किया। हम आस्ट्रेलिया का गेहूँ खाकर, चीन की चाय पीकर, अमेरिका की मोटरों पर बैठकर भी उनको उत्पन्न करनेवाले प्राणियो से बिलकुल अपरिचित रहते है, लेकिन मोपासॉ, अनातोल फ्रान्स, चेखोव और टॉलस्टॉय की कहानियाँ पढकर हमने फ्रान्स और रूस से आत्मिक सम्बन्ध स्थापित कर लिया है। हमारे परिचय का क्षेत्र सागरो, द्वीपो और पहाडों को लॉचता हुआ फ्रान्स और रूस तक विस्तृत हो गया है । हम वहाँ भी अपनी ही आत्मा का प्रकाश देखने लगते है। वहाँ के किसान और मजदूर एवं विद्यार्थी हमे ऐसे लगते है, मानो उनसे हमारा घनिष्ट परिचय हो।

हिन्दी मे बीस-पच्चीस साल पहले कहानियों की कोई चर्चा न थी। कभी-कभी बॅगला या अँगरेजी कहानियों के अनुवाद छप जाते थे। परन्तु आज कोई ऐसा पत्र नहीं, जिसमे दो-चार कहानियाँ प्रतिमास न छपती हो । कहानियो के अच्छे-अच्छे संग्रह निकलते जा रहे हैं। अभी बहुत दिन नहीं हुए कि कहानियों का पढना समय का दुरुपयोग समझा जाता था। बचपन मे हम कभी कोई किस्सा पढ़ते पकड़ लिये जाते थे,