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साहित्य-सीकर

मुसल्मान उल्मा समझते हैं कि त्रिलोक का ज्ञान उनके कुरान में भरा है। इससे सब लोगों को उसी का मनन और निदिध्यासन करना चाहिए। और किसी धर्म-पुस्तक के पढ़ने की जरूरत नहीं। जिस मुसल्मान-नरेश ने अलेग्जांड्रिया का विश्वविख्यात पुस्तकालय जलाकर खाक कर दिया उसकी भी यही समझ थी। इससे जब पुस्तकालय के अधिकारी उससे पुस्तकालय छोड़ देने के लिए प्रार्थना करने गये तब, आप जानते हैं, उसने क्या उत्तर दिया? उसने कहा कि पुस्तकालय में संग्रह किये गये लाखों ग्रन्थों में ज्ञान-कथा है वह हमारे कुरान में है। सच्चे ज्ञान की कोई बात उससे नहीं छूटी। इसलिए इन इतने ग्रन्थों के संग्रह की कोई ज़रूरत नहीं और यदि इनकी कोई बात कुरान में नहीं है तो वह सच्चे ज्ञान की बोधक नहीं। अतएव इस तरह भी इन ग्रन्थों की कोई ज़रूरत नहीं। इन सब का काम अकेले हमारे कुरान शरीफ से चल सकता है। सो इसी सच्चे ज्ञान की बदौलत इस देश के वेद ग्रन्थों का एक बड़ा अंश नष्ट हो गया। वेदों की कितनी ही शाखायें, अनुक्रमणिकायें और ब्राह्मण लोप हो गये। जब अंगरेज़ों को वेद ग्रन्थों की चाह हुई तब उनका मिलना मुश्किल हो गया। जयपुर पर मुसल्मान बादशाहों की दया-दृष्टि रही है। इससे वहाँ का वेद-ज्ञान-भण्डार "पलीता" लगाने से बच गया।

१७७९ ईसवी में कर्नल पोलियर ने तत्कालीन जयपुर-नरेश से वेद चतुष्टय की नकल माँगी। उन्होंने इस बात को स्वीकार करके वेदों की नकल की जाने की आज्ञा दे दी। एक वर्ष में नकल तैयार हुई। पर साहब लोग समझे थे कि वेदों का नाश हो चुका है। इससे उनके वेद होने में उन्हें विश्वास न हुआ। वे समझे थे कि बनावटी वेद हैं। इस कारण कर्नेल पोलियर ने उस समय के प्रसिद पण्डित राजा आनन्दराम को वह नकल दिखाई। उन्होंने उस ग्रन्थ को यथार्थ वेद बतलाया।