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साहित्य-सीकर

टाइम्स के मालिकों ने "वाल्टर" प्रेस की आविष्कार किया। तब टाइम्स की बारह हज़ार कापियाँ एक घण्टे में छपने लगीं। १८९५ में हो-नामक एक साहब के बनाये हुये प्रेस काम में आने लगे। उन प्रेसो ने छापेखाने के व्यवसाय में अभुतपूर्व हलचल पैदा कर दी। उन्होंने संसार को चकित-सा कर दिया। उनकी बदौलत एक ही घंटे में छत्तीस हजार कापियाँ निकलने लगीं। इतना ही नहीं, प्रेस की मशीन से एक कल ऐसी भी लगा दी गई जो छपे हुये कागजों को साथ ही साथ पुस्तक का रूप देकर उनकी सिलाई भी कर देने लगी।

टाइप कम्पोज करने में बहुत समय लगता था। १८७९ ईसवी में यह कठिनता या त्रुटि भी दूर कर दी गई। टाइम्स के कार्यालय के जर्मनी-निवासी एक कारीगर ने एक ऐसी कल ईज़ाद कर दी जो एक घंटे में टाइम्स पत्र की २९८ सतरें वा १६,३८८ भिन्न-भिन्न प्रकार के टाइप कम्पोज करने लगी। इस कल को टाइम्स के मालिकों ने उस कारीगर से मोल ले लिया।

पारलियामेंट की कामन्स सभा की वक्तृताओं को सर्वसाधारण के पास तक सबसे पहले पहुँचाने का भी प्रबन्ध किया गया। १८८५ ईसवी में पारलियामेंट के भवन से लेकर टाइम्स के कार्यालय तक टेलीफोन लग गया। उधर पारलियामेंट में वक्तृतायें होती थीं, इधर टाइम्स के कार्य्यालय में कम्पोजीटर लोग मैशीन द्वारा उन्हें कम्पोज करते जाते थे। इसके कुछ काल बाद पारलियामेंट का काम आधी रात से आरम्भ होने लगा। तब से टेलीफोन की जरूरत न रही। संवाददाताओं ही के द्वारा प्राप्त हुई वक्तृताओं की नकल छाप दी जाने लगी।

टाइप कम्पोज करनेवाली मैशीनों के कारण समय की बड़ी बचत हुई परन्तु छापने के बाद टाइपों के निकालने और उन्हें उनके