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सर विलियम जोन्स ने कैसे संस्कृत सीखी

आदमियों के यहाँ नाटक खेले जाते थे। अँगरेजों को यह बात मालूम थी। पं॰ रामलोचन ने कहा कि पुराने जमाने में भी राजों और अमीर आदमियों के वहाँ ऐसे ही नाटक हुआ करते थे। यह सुनकर सर विलियम को आश्चर्य हुआ और पंडित रामलोचन से आप शकुन्तला पढ़ने लगे। उस पर आप इतने मुग्ध हुये कि, उस पर गद्य पद्यमय अंगरेजी अनुवाद आपने कर डाला। यद्यपि अनुवाद अच्छा नहीं बना, तथापि योरपवालों की आँखें खोल दीं। उसे पढ़कर लोगों ने पहले पहल जाना कि संस्कृत का साहित्य खूब उन्नत है। जर्मनी का गैटी नामक कवि तो सर विलियम के अनुवाद को पढ़ कर अलौकिक आनन्द से विभोर हो उठा। उसने उसी ममता की दशा में शकुन्तला की स्तुति में एक कविता तक बना डाली।

सुनते हैं, सर विलियम जोन्स के संकृत-शिक्षक बड़े तेज मिजाज आदमी थे। जो बात सर विलियम की समझ में न आती थी उसे गुरु जी से पूछना पड़ता था। गुरु महाशय ठीक तौर पढ़ाना जानते न थे। वे सर विलियम को भी उसी रास्ते ले जाते थे जिस रास्ते टोल (पाठशालाओं) के विद्यार्थी जाते हैं। इससे सर विलियम को कभी-कभी कोई बात दो-दो, तीन-तीन दफे पूछनी पड़ती थी। एक दफे बताने से वह उनके ध्यान ही में न आती थी। ऐसे मौकों पर गुरुदेव महाशय का मिजाज गरम हो उठता था। आप झट कह बैठते थे—"यह विषय बड़ा ही क्लिष्ट है, गौ-माँस-भोजी लोगों के लिए इसका ठीक-ठीक समझना प्रायः असम्भव है।" पर सर विलियम जोन्स पंडित महाशय को इतना त्याग करते थे और उन्हें इतना मान देते थे कि उनकी इस तरह की मलामतों को हँसकर टाल दिया करते थे।

पंडित रामलोचन कविभूषण १८१२ ईसवी तक जीवित थे। वे अच्छे विद्वान् थे। काव्य, नाटक, अलंकार और व्याकरण में वे खूब