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पृष्ठ:साहित्य सीकर.djvu/७६

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९—हिन्दी शब्दों के रूपान्तरों

[ बात-चीत ]

गणेशदत्त—मेरी नींद-भूख जाती रही है।

देवदत्त—क्यों?

ग॰—हिन्दी के कुछ लेखक हिन्दी के कुछ शब्दों की बड़ी ही दुर्दशा करते हैं। वे उन्हें एक रूप में नहीं लिखते। कई 'दिये' लिखता है, कोई 'दिए'। इस विषमता ने मेरे उदर में शूल उत्पन्न कर दिया है।

दे॰—कहिए, इसका क्या इलाज किया जाय?

ग॰—मेरा बनाया एक नियम या सूत्र जारी करा दीजिए। उसके अनुसार काम होता देख मेरा शूल दूर हो जायगा और फिर मैं पूर्ववत् खाने-पीने लगूँगा। शब्दों में एक-रूपता भी आ जायगी।

दे॰—अपना सूत्र सुनाइए।

ग॰—सुनिये-किसी शब्द का काई रूप यदि स्वगन्त या व्यञ्जनान्त किये बिना लिखा न जा सके, तो उस शब्द के अन्यान्य रूप भी क्रमानुसार स्वरान्त या व्यञ्जनान्त होंगे।

दे॰—सूत्र तो आपका बड़ा अलबेला है। शास्त्रों में सूत्र का जो लक्षण लिखा है उससे आपका सूत्र कोसों इधर-उधर भाग रहा है। यह उसका अलबेलापन नहीं तो क्या है। अब या तो आपका यह नियम ही रहे या शास्त्रोक लक्षण ही। दोनों नहीं रह सकते।