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हिन्दी शब्दों के रूपान्तर


ग॰—मेरे नियम में दोष क्या है?

दे॰—दोष बताऊँगा, पर पहले आप यह तो बताइए कि स्वरों और व्यञ्जनों के सिवा क्या तीसरे प्रकार के भी कोई वर्ण देवनागरी वर्णमाला में हैं।

ग॰—मैंने कब कहा कि तीसरे प्रकार के भी काई वर्ण हैं।

दे॰—नहीं कहा? तो फिर—"किसी शब्द का कोई रूप यदि स्वरान्त या व्यञ्जनान्त किये बिना लिखा न जा सके"—इसका क्या अर्थ? वर्णों के दो ही भेद हैं—स्वर और व्यञ्जन। शब्दों और शब्दों के रूपान्तरों के अन्त में इनमें से एक अवश्य ही रहेगा। इस दशा में, "यदि न लिखा जा सके" के क्या मानी? सूत्रों में इस प्रकार के निरर्थक और सन्देह-जनक वाक्य नहीं रहते। यह दोष है। समझे।

ग॰—दोष सही। नियम की भाषा पीछे ठीक कर ली जायगी। मतलब की बात कहिए। मेरी प्रयोजन सिद्धि के सहायक हूजिये।

दे॰—जिस बात से आप अपना प्रयोजन सिद्ध करना चाहते हैं उसकी जड़ ही हिल रही है। आपका अर्जी दावा ही गलत है। इस कारण मुकदमें का फैसला कभी आपके अनुकून नहीं हो सकता। पेड़ की जड़ को पहले मजबूत कीजिये। तब उससे फूल और फल पाने की आशा रखिये।

ग॰—अच्छा, मेरी गलती बताइए तो। जड़ की कमजोरी मुझे दिखा तो दीजिये। शान्त भाव से विचार कीजिये।

दे॰—मैंने तो जरा भी अशान्ति नहीं दिखाई। किसी की गलती बताना यदि अशान्ति उत्पन्न करना हो, तो इस मामले को यहीं रहने दीजिये। न आप मुझसे कुछ पूछेंगे, न मुझे आपकी गलती दिखाने का मौका मिलेगा।

ग॰—नहीं, मैं गलती बताने से अप्रसन्न न हूँगा। आप मेरा भ्रम