पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१५१

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सितार मालिका सितार में चक्रदार बजाना चक्रदार बनाने का नियम - जिस प्रकार तबले या पखावज में चक्रदार बजाई जाती हैं, उसी प्रकार उन्हीं बोलों के आधार से सितार में भी चक्रदार बजा सकते हैं। चक्रदार बजाने से दो लाभ होते हैं । (१) कुछ थोड़े से तबले के बोलों को इस प्रकार रखा जाता है कि याद ती कम करना पड़े और सुनने में लम्बा मालूम हो, साथ-साथ लय में भी विचित्रता उत्पन्न करदे । और (२) चूंकि इसमें एक ही बोल को, कम से कम तीन बार वजाना पड़ता है अतः वादक के हाथ में मिठास और सफाई आती है। तीन ताल में चक्रदार बनाने के लिये सबसे सरल नियम यही है कि किसी भी एक ऐसे सोलह मात्रा के टुकड़े को ले लीजिये, जिसमें तीया न हो । उदाहरण के लिये देखियेः- चिट धा धाधा तिरकिट धिट धा धातु ऽन्ना O किड़नग तिरकिट तकता तिरकिट घिट धागे नधा तिरकिट इसकी चक्रदार बनाने के लिये पहिली बारह मात्राओं को ज्यों का त्यों रखिये और अन्तिम चार मात्रा और सम वाला 'धा' कुल पांच मात्राओं को तीन बार बजा जाइये । जैसे:-धिट धा धाधा तिरकिट घिट था धातु ऽन्ना किड़नग १ ३ तिरकिट तकता तिरकिट धिट धागे नधा तिरकिट धा, घिट धागे नधा १२ नधा तिरकिट धा २ ४ ५ en ७ ६ तिरकिट धा, धिट धागे २२ इस प्रकार अन्तिम चार मात्रा और एक धा, कुल मिला कर पांच मात्राओं को तीन बार बजाने से (५४३-१५) पन्द्रह मात्राएँ हुई। इनमें जब पहिले की बारह मात्राएँ और जोड़ दी तो कुल मिलाकर २७ मात्राएँ हुई। जब इन सत्ताईस मात्राओं को तीन बार बजा दिया तो कुल ८१ मात्रा हुई। अर्थात् तीन ताल की पांच आवृत्तियों के बाद अन्तिम धा सम पर आयेगा (१६४५=८०+१ सम) देखा आपने ? आपने किस युक्ति से सोलह मात्राओं को पांच श्रावृत्ति में बजा डाला। यदि इस चक्रदार को पूरी तरह लिखें तो इस प्रकार लिखी जायेंगी (चक्रदार नं० १) X धिट धा धाधा तिरकिट धिट धा धातु