पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२००

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बीसवां अध्याय १६६ अब्दुल हलीम जाफर धर्तमान तरुण सितारवादकों में अब्दुल हलीम जाफर महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। असाधारण तैयारी और पर्याप्त माधुर्य इनके सितार वादन के प्रमुख आर्कषण हैं। हलीम जाफर का जन्म सन् १९२७ ई० के लगभग जावरा में हुआ था। दस वर्ष की आयु से ही आपको सङ्गीत में अभिरुचि उत्पन्न हो गई। प्रारम्भ में श्राप गजलें गाया करते थे तत्पश्चात् उस्ताद बाबू खां से सितार की शिक्षा लेना प्रारम्भ कर दिया। यह क्रम दो वर्ष तक चला, उस्ताद बाबूखां की मृत्यु हो गई इसके बाद जाफर साहेब ने उस्ताद बन्दे अलीखां के वन्शज उस्ताद महबूब खां से सितार की तालीम लेनी शुरू करदी। सितार शिक्षा के साथ-साथ इन्होंने परिश्रम करके हाई स्कूल की परीक्षा भी पास करली। प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियां और पारिवारिक सहायता के अभाव में अंग्रेजी शिक्षा का क्रम भंग हो गया और इनकी रुचि का पूर्ण प्रवाह सङ्गीत की ओर हो गया, इस बीच इन्होंने जलतरङ्ग वादन भी सीखा। अब नवयुवक हलीम जाफर को 'एशियाटिक पिक्चर्स' के आर्केस्ट्रा विभाग में नौकरी भी मिल गई। आर्थिक परिस्थितियां कुछ अनुकूल हो गईं। सङ्गीत साधना का पथ प्रशस्त होता गया। फिल्म क्षेत्र में इस कलाकर की मांग बढ़ी-महात्मा विदुर फिल्म में स्वतन्त्र सितार-वादन का कार्य सफलता से निभाने के पश्चात् आपको अनारकली और शबाब जैसे लोकप्रिय चलचित्रों में स्वतन्त्र सितार वादन के अवसर प्राप्त हुए। शनैः शनैः अब्दुल हलीम जाफर जनप्रिय कलाकार बनने लगे। विभिन्न सङ्गीत गोष्टियों, सङ्गीत सम्मेलनों, अाकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों, तत्पश्चात् श्राकाशवाणी से प्रसारित होने वाले राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भी इन्होंने सफलता पूर्वक भाग लिया। इनके सितार वादन में आधुनिक और प्राचीन शैलियों का संगम दृष्टिगत होता है जिसके कारण वादन शैली में एक प्रकार की अभिनवता का उदय हो गया है। बीनकारों से शिक्षा प्राप्त होने के कारण इनके वादन में कुछ-कुछ वीणा अङ्ग का भी आभास मिलता है। रजाखानी और मसीतखानी गते बड़ी कुशलता और परिमार्जित ढङ्ग से बजाते हैं। अभिमान से कोसों दूर रहने वाले युवक कलाकार हलीम जाफर वर्तमान काल में जनता के प्रिय कलाकार हैं। इनकी निरन्तर प्रगति स्वर्णिम भविष्य की द्योतक है। 7