पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/३८

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चतुर्थ अध्याय गतों के धराने-- इन्हीं 'दिड' 'दा' 'डा' 'दाऽड़' और 'द्रा' बोलों को इच्छानुसार तबले के साथ बजाने के लिये जो बन्दिशें की गई हैं, उन्हें 'गति' अर्थात् चाल कहते हैं। यही 'गति' शब्द अब 'गत' रह गया है। - विलम्बित गति जब इन बोलों को इस क्रम से रखा गया कि 'दा' 'डा' और 'दिड़ आदि अधिक समय लेने वाले बोल ही प्रयोग में आयें, तो प्रत्येक स्वर की अथवा बोल की गति विलम्ब से हुई । अतः इस प्रकार की रचना, बन्दिश अथवा मेल को 'विलम्बित गति' कहा गया। उदाहरण के लिये आप तीनताल में एक विलम्बित गति तैयार करना चाहते हैं, तो किसी भी प्रकार सोलह मात्रा तक, कोई भी बोल इस प्रकार बजाते रहिये कि सुनने में मधुर लगें और 'सम' के स्थान पर तनिक झटका सा प्रतीत होने लगे; ताकि सुनने वालों की भी गर्दन हिल जाये। बस, आपकी यही 'विलम्बित गति' बन गई। द्रुत गति-- जब आप अपनी रची बन्दिश में 'दा' 'डा' दिड़' के स्थान पर दा,ऽर, दा,ऽर, दिर, द्रा आदि वह बोल, जिनमें कम समय लगता है, ले लें, तो अब आपकी सोलह मात्राओं का चक्र शीघ्र ही पूरा हो जायेगा । अर्थात् आपकी गति द्रुत लय में चलेगी। बस, इसी प्रकार के मेल को 'द्रुत गति' कहते हैं। मध्य गति-- जब एक गति में कुछ बोल 'दा' 'डा' आदि रखे जायें और कुछ दाऽर दाऽर दा आदि रखे जायें, तो यह गति न तो विलम्बित ही रहेगी और न द्रुत, अतः इस गति को 'मध्य-ति' कहेंगे। जब सङ्गीत की भाषा में यही बात अधिक स्पष्ट करनी होती है तो इन्हें 'गति' के स्थान पर 'लय' शब्द से भी सम्बोधित करते हैं। अतः इन्हें क्रम से 'विलम्बित लय'. 'मध्य लय' और 'द्रुत लय' कहते हैं । विद्यार्थियों के लिये यही तीन लय मुख्य हैं। विभिन्न लयों अथवा गतियों का आपस में सम्बन्ध-- जिस लय को आप मध्य लय मान लें, उसकी आधी को 'विलम्बित' और विलम्बित की भी आधी को 'अति विलम्बित' लय कहते हैं। इसी प्रकार 'मध्य लय' की दूनी लय को द्रुत' और द्रुत लय की दूनी लय को 'अति द्रुत' लय कहते हैं। परन्तु मध्य लय का कोई निश्चित माप न होने के कारण 'अति-विलम्बित' को भी विलम्बित और अति को भी 'द्रुत' ही कहते हैं। अतः मुख्य लय केवल तीन ही हैं ।