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पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/१४५

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काव्य के वर्थ- हास्य १०६ 10 अपहसित एवं प्रतिसित होता है। .. किसी की विकृतिपूर्ण परिस्थति-पर हँसना यह साधारण कोटि का हास्य होता है। श्रीवास्तवजी की कहानियाँ और उपन्यासों में यह अधिक रहा है । कथोपकथन का हास्य श्रेष्ठ होता है, इसमें कभी तो कहने वाले की ओर से ही होता है और कभी उत्तर-प्रत्युत्तरों में होता है । जहाँ शाब्दिक चमत्कार अधिक होता है वहाँ उसे अंग्रेजी में 'Wit' कहते हैं । व्यङ्गय (Satire) में कुछ तीखापन प्राजाता है। . . " : परशुराम-संवाद में लक्ष्मणजी की हास्यमय उक्तियाँ ('मातहिं पित हिं उरिन भय नीके । गुरु ऋण रहा सोच बढ़ जीके' ) रौद्ररस के लिए उद्दीपन का काम देती हैं किन्तु स्वयं लक्ष्मणजी के सम्बन्ध में वे वीर के सञ्चारीरूप में समझी जायँगी। शिवजी की बरात में भगवान विष्णु का यह कथन- 'वर अनुहार बरात न भाई, हँसी करैहो पर पुर जाई',-बड़े शिष्ट व्यङ्गय का उदाहरण है । रहीम का यह दोहा—'पुरुष पुरातन की बधू क्यों न चञ्चला होय'-बड़े सुन्दर हास्य (Humour) का नमूना है । शाब्दिक चमत्कार के हास्य का नमूना हमें बिहारी के नीचे के दोहे में मिलता है :- . 'चिरजीवी जोरी, जुरे क्यों न सनेह गंभीर । को घटि, ए वृषभानुजा, वे हलधर के वीर ॥' -बिहारी-रत्नाकर (दोहा ६७७) ( इसमें श्लेष का चमत्कार है । वृषभानुजा के दो अर्थ हैं, वृषभानु की पुत्री राधा और वृषभ = बैल की अनुजा = छोटी बहन । हलधर के वीर के दो अर्थ हैं बलराम के भाई और हल को धारण करने वाले बैल के भाई )। ___.. परिहासमय अनुकरण (Parody) भी एक प्रकार की विपरीतता अथवा अप्रत्याशितता का उदाहरण होता है :- 'पागे चले बहुरि रघुराई । पाछे लरिकन धूरि उड़ाई ॥' शृङ्गार के अन्तर्गत असूया सञ्चारी से प्रेरित कुब्जा और कृष्ण के प्रति गोपियों द्वारा किये हुए व्यङ्गय के उदाहरण भ्रमरगीत में प्रचुरता से मिलते हैं । दो-एक उदाहरण लीजिए :- (क) 'राम-जनम-तपसी' जदुराई । तिहि फल बधू कूबरी पाई ॥ सीता-बिरह बहुत दुख पायो । अब कुबजा मिलि हियो सिरायो ।' --भ्रमरगीतसार (पृष्ठ १०५) (ख) . .. 'गोकुल में जोरी कोऊ पाई नाहिं मुरारि,