पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रस और मनोविज्ञान-मनोवेग और विभिन्न मत - यह जान लेने के पश्चात् कि रस मनोवेग नहीं है वरन् साधारणीकरण के भपके में खिची हुई उनकी भावना का सामूहिक आस्वाद-मात्र है, अब हमको यह जानना चाहिए कि रस-सिद्धान्त से मनोवेगों के मनोवेग और मनोविज्ञान पर क्या प्रकाश पड़ता है ? इसके लिए विभिन्न मत हमको पहले यह समझ लेना आवश्यक है कि मनोवेग ..... किसे कहते हैं ? इस सम्बन्ध में पाश्चात्य देशों के मनो- वैज्ञानिकों का बहुत मतभेद है । . ... विलियम जेम्स का मत : पश्चिम के प्राचार्यों ने मनोवेगों के वाह्य अभि- व्यञ्जकों (External Expressions) पर अधिक जोर दिया है, यहाँ तक कि जेम्स और लेंग ( James and Lange) ने तो मनोवेगों के वाह्या- भिव्यञ्जकों के परिज्ञान को ही मनोवेग माना है। रोना एक स्वतः- चालित क्रिया है । हम अश्रुमोचन इसलिए नहीं करते हैं कि हम दुःखी. हैं वरन् हम अपने को दुःखी इसलिए अनुभव करते हैं कि हमको अश्रुमोचन का परिज्ञान हो रहा है । भय हमको इसलिए प्रतीत होता है कि हमको कम्प और पैरों की पलायनोन्मुखता का भान होने लगता है :- ... . . We feel sorry because we cry, angry because we strike, afraid because we treinble, and not that we cry, strike or tremble because we are sorry, angry and fearful, as the case may be. . . --. -William James ( Psychology, Page 376) .. विलियम जेम्स साहब ने शायद उन्हीं मनोवेगों को ध्यान में रक्खा है जिनमें भौतिक अभिव्यञ्जकों का प्राधान्य है। वे शायद ऐसी परिस्थितियों को भूल गये जहाँ जरा-सी बात तीर का काम करती है और बिना अश्रु के भी विषम वेदना का दुःखद अनुभव सारी चेतना को व्याप्त कर देता है। ऐसी अवस्था में भौतिक परिवर्तनों की अपेक्षा मानसिक बोध अधिक होता है। दो- एक कुत्तों पर ऐसे प्रयोग किये गये हैं कि उनके शारीरिक परिवर्तनों से सम्बन्ध रखने वाले ज्ञान-तन्तु नष्ट कर दिये जाने पर भी उनमें मनोवेग के लक्षण दिखाई पड़े हैं। इसके अतिरिक्त एक ही प्रकार के अनुभाव या वाह्याभिव्यञ्जकों का दो विपरीत मनोवेगों से सम्बन्ध रहना सम्भव है---जैसे अश्रु, विषाद और हर्ष दोनों के ही होते हैं । कम्प, प्रेम में भी होता है और भय में भी। यही हाल रोमाञ्च का है। हमारे यहाँ मनोवेगों के वाह्याभिव्यञ्जकों को पर्याप्त महत्त्व दिया गया