पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२२४

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१३ : काव्य के विभिन्न रूप काव्य के कई प्रकार के भेद किये गये हैं । जहाँ मनुष्य के स्वभाव और बृत्तियों में भेद है वहाँ काव्य में भी, जो उसकी भावप्रधान प्रतिक्रिया की अभि- व्यक्ति है, भेद होना आवश्यक है । भेद' के कई आधार पाश्चात्य परम्परा है। योरोप वालों ने व्ययित और संसार को अलग करके काव्य के दो भेद किये हैं-एक विषयीगत (Subjec- tive) जिसमें कवि को प्रधानता मिलती है और दूसरा विषयगत (Odjec- tive) जिसमें कवि के अतिरिक्त सष्टि को मुख्यता दी जाती है। पहले प्रकार के काव्य को लिरिक (Lyric) अर्थात् धैरिणक गीत अथवा भावप्रधान कहा गया है और दूसरे प्रकार को अनुकृत (महाकाव्य जिसका प्रतिनिधि रूप है) या प्रक्कथनात्मक (Narrative) कहा गया है। यह विभाजन प्रायः कविता (पद्य) का है । गद्य का भी ऐसा विभाजन किया जा सकता है। गद्यकाव्य को हम भावप्रधान कहें और शेष को अनुकृत या वर्णनात्मक विन्तु गद्य में विचारात्मक सामग्री का वही अंश लेंगे जिसे वास्तव में काध्य कह सके । ___ काव्य का यह विभाग युङ्ग के बतलाये हए अन्तर्मुखी (Introvert) और बहिर्मुखी (Extrovert) प्रकारों के अनुकूल बैठता है। अन्तर्मुखी वे लोग होते हैं जो अपने को ही मुख्यता देकर संसार से उदासीन रहते हैं और बहिर्मुखी वे लोग होते हैं जो अपनी अपेक्षा संसार की अधिक परवाह करते हैं। अन्तर्मुखी गीतकाव्य अधिक लिखते हैं और बहिर्मुखी अनुकृत काव्य की ओर प्रवृत्त होते हैं। ___ यद्यपि यह विभाजन' मनोवैज्ञानिक है तथापि सदोष है । गेप तो अनुकृत काव्य भी हो सकता है ( जैसे रामायण ), मुख्यता वैयक्तिक भावना की है । इस विभाग के बीच की रेखा निर्धारित करना बहुत कठिन है । कोई अनुकृत काव्य ऐसा नहीं जिसमें वैयक्तिक भावनाओं को प्रधानता न मिली हो और कोई ऐसा गीतकाध्य नहीं जिसका वाह्य संसार से सम्बन्ध न हो और जिसमें .. प्राक्कथन का थोड़ा-बहुत आधार हो । फिर भी हम यह कह सकते हैं कि जिस काव्य में जिस बात की प्रधानता हो उस काव्य को हम उसी नाम से पुकारेंगे। नाटक को प्रायः बीच का स्थान दिया जाता है । वह विषय-प्रधान तो है ही और उसमें कवि के तो नहीं किन्तु पात्रों के भाव महाकाव्य की अपेक्षा अधिक रहते हैं।