पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१६ सिद्वान्त और अध्ययन अपनी शैली में रो अपने व्यक्तित्व को निकाल नहीं सकता, फिर भी विषय को भी उसे इतना व्यक्तित्व देना चाहिए कि वह स्वयं बोलने-सा लगे । इस विषय में 'मिडिल्टन मरे' (Middleton Murry) का शैली को सम्बन्ध में निम्नोल्लिखित वाक्य पठनीय है :- ___ It (highest style) is an combination of the maximutn of personality with the maximum of imper'sonality ; on the one hand it is a concentration of peculiar und per- sonal emotion, on the other hand it is a complete projection of this personal emotion into the created thing.' -J. Middleton Murry ( The Problem of Style, ____Page 35) मरे साहब कलाकार के व्यक्तित्व को हाति में इस प्रकार उतारना चाहते है कि वह कलाकार का व्यक्तित्व न रहकार स्वयं कृति का व्यणितत्व बन जाय । शैली कोई एक ठप्पा नहीं है जिसकी ऊपर से छाप लगा दी जाय । कलाकार के विचारों और भावों के साथ ही उसका विकास होता है और कलाकार के विचारों और भावों में कलाकार के व्यक्तित्व के साथ संसार की गतिविधि की छाप रहती है । शैली में संसार और कलाकार की क्रिया-प्रतिनिया की झलक रहती है। शैली को समझने के लिए कलाकार का जीवन के प्रति दृष्टिकोण समझना चाहिए। कलाकार के दृष्टिकोण के अनुकूल ही उसकी अनुभूति होगी और उसके अनुकूल ही उसकी अभिव्यक्ति होगी। कुछ लोगों की ऐसी धारणा है कि भारतीय समीक्षकों ने वैयक्तिक शैली की ओर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने सामान्य (टाइपों) का ही विवेचन किया है, यह धारणा मिथ्या है। वास्तव में उन्होंने वैयगितक शैली में व्यक्तित्व शैली की अनेकता स्वीकार की है और उसका व्यक्ति के . और सामान्यता स्वभाव के साथ सम्बन्ध भी माना है। प्राचार्य दण्डी ने __कहा है-'अस्त्यनेको गिरी मार्गः सूचमभेदः परस्परम् । (काव्यादर्श, १॥७०)। व्यक्तियों की शैली अनेक होते हुए भी उनमें कुछ सामान्य गुण होते हैं। व्यक्ति भी वर्गों में बांटे जा सकते हैं । इसी प्रकार शैलियों के भी वर्ग होते हैं। हर एक व्यक्ति में उनका पृथका रूप होता है किन्तु उसका वर्णन नहीं किया जा सकता । दण्डी ने कहा है कि वैदी भीर गौडी रीतियों के मार्ग भिन्न-भिन्न हैं किन्तु अलग-अलग कवि में उनके जितने