पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२४

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( २० ) मतिराम में कुछ उदाहरण दोहों में और कुछ सवैये आदि बड़े छन्दों दिये हैं। . भूषण (जन्म-संवत् १६७० ) ने लिखा तो अलङ्कार-ग्रन्थ ही किन्तु नकी विशेषता यही है कि इन्होंने उदाहरण शिवाजी से सम्बन्धित वीररस के दिये हैं। इनके दिये हुए लक्षण अशुद्ध बतलाये जाते हैं । - भूषण कुछ लोग इस स्वतन्त्रता को विचार-स्वातन्त्र्य का घोतक ... मानते हैं किन्तु जहाँ उदाहरण लक्षण के अनुकूल नहीं है, जैसे परिणाम, लुप्तोपमा भ्रम, सम, विभावना, अर्थान्तरन्यास में) वहाँ मको यह स्वीकार करना पड़ेगा कि कवित्व ने आचार्यत्व को दबा लिया है। भावना के लक्षण में तो यह कहा जाता है कि :- . 'भयो काज बिनु हेतु ही, बरंनत है जिहि ठौर । तहँ विभावना होति है, कवि भूपन सिरमौर ।' ___-भूषण-प्रथावली (दोहा २५)

. किन्तु जो उदाहरण दिया गया है उसमें प्रसङ्गति की झलक अधिक

-~-'दीन्हो कुन्वाब दिलीपति को अरु कीन्हों बजीरनु को मुह कारों भूषण-ग्रन्थावली, दोहा १८६) । असङ्गति का लक्षण इस प्रकार हैं :- 'हेतु अनत ही होय जह काज ननत ही होय' ___-भूषण ग्रन्थावली ( दोहा १६६) आचार्य कुलपति मिश्र ( रचना-काल संवत् १७२७ ) का मुख्य ग्रन्थ स-रहस्य' है जो थोड़े-बहुत अन्तर के साथ ( उदाहरणों में इन्होंने अपने आश्रयदाता महाराज रामसिंह की प्रशंसा के छन्द रक्खे प्राचार्य है ) 'काव्यप्रकाश' का छायानुवाद है । इसका विवेचन कुलपति मिश्र अपेक्षाकृत कुछ गम्भीर है और इसीलिए कहीं-कहीं गद्य . की वृत्ति भी है। यही इसकी विशेषता है। चिन्तामणि की भाँति इन्होंने भी काव्य के दो लक्षण दिये हैं--(१) रस- 'धान और (२) 'काव्यप्रकाश' से प्रभावित निर्दोषता और सगुणता पर बल देने ला । इनमें प्राचार्यों के मत की आलोचना की भी प्रवृत्ति दिखाई देती है। आचार्य देव ( जन्म-संवत् १७३० ) में प्रायः ५२ ग्रन्थ लिखे हैं। उनमें रसविलास', 'भवानीविलास', "मावविलास', 'शब्दरसायन' मादि ग्रन्थ है जिस- में प्रायः सभी काव्याङ्गों का वर्णन किया गया है । उसमें प्राचार्य देवरस के साथ शब्दशक्तियों और रीतियों का भी वर्णन है। देव ने 'शब्दरसायन' में शब्द की सार्थकता इस प्रकार