पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२६३

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शब्द-शक्ति-व्यन्जना की व्याख्या
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प्रतिभावान् लोगों के मन में स्फुरित होता है उसे व्यङ्गयार्थ कहते हैं और जिस व्यापार द्वारा यह अर्थ स्फुरित होता है उसे व्यञ्जनाशक्ति कहते हैं। इसमें यह स्पष्ट है कि यह अर्थ प्रतिभावान् लोगों को ही व्यक्त होता है। व्यञ्जनों में कल्पना और बुद्धितत्त्व दोनों का ही काम पड़ता है। ____ इनमें सब भेदों को न बतलाकर कुछ के उदाहरण यहाँ दिये जाते हैं । वक्तृवैशिष्ट्य से-'सागर कूल मीन तरफत है, हुलसि होत जल पीन' -यह वाक्य सूर की गोपियों द्वारा कहा गया है, इसलिए यहाँ यह व्यञ्जना है कि कृष्ण के बहुत दूर न होते हुए भी वे उनके प्रेम से वञ्चित हैं। यही बात या कुछ ऐसी ही बात कबीर ने कही है-'नदिया में मीन प्यासी' । कजीर के रहस्यवादी तथा आध्यात्मिक साधना के कवि होने के कारण इसकी व्यञ्जना यह होती है कि परमात्मा तत्त्वव्यापक है, जीव उसी का अङ्ग है किन्तु माया के कारण वह प्राध्यात्मिक प्रानन्द से वञ्चित है। योद्धव्यवैशिष्ट य : 'नन्द ! ब्रज लीजे ठोंकि बजाय । देहु बिदा मिलि जाहि मधुपुरी जहँ गोकुल के राय ।।' . -भ्रमरगीतसार की भूमिका (पृष्ठ २३) नन्दजी को गोकुल में रहने का अधिक मोह था। 'ठोक बजाय' की व्यञ्जना की सार्थकता इसीमें है कि वह बात नन्दजी से कही गई थी। 'ठोकर बजाय' में ब्रज के प्रति अनुचित मोह और यशोदा को झुंझलाहट व्यङ्गय है। ___काकुवैशिष्टय : इसका उदाहरण भिखारीदासजी ने अपने 'काव्यनिर्णय' में इस प्रकार दिया है :- 'दग लखि हैं मधुचन्द्रिका, सुनि हैं कलघुनि कान । रहिहैं मेरे प्रान तन, प्रीतम करो पयान ॥' --भिखारीदासकृत काव्यनिर्णय (पदार्थनिर्णय ५५) ___ इसमें नायिका जाने की तो कहती है किन्तु जिस कण्ठध्वनि से कहती है उससे निषेध व्यजित होता है । देशवैशिष्ट य: 'घाम घरीक निवारियै, कलित ललित अलि-पुज । जमुना-तीर तमाल-तरु-मिलित मालती कुज ॥' -बिहारी-रत्नाकर (दोहा १२७) .यहाँ स्थान की शीतलता (जमुना-तीर), एकान्त और अन्धकार (अलि- पुज) आदि की जो व्यजनाएँ हैं, स्थान-विशेष के ही कारण हैं।