पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२७१

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भेद-ध्वनि के भेद एक उदाहरण और आधुनिक कवियों से लीजिए। इस सुन्दर उदाहरण की ओर मेरा ध्यान पण्डित रामदहिन मिश्र के काव्यालोक के द्वितीय उद्योग द्वारा प्राकर्षित हुआ है । यह ग्रन्थ शब्द-शक्ति के लिए बड़ा उपयोगी है :- 'प्रिय तुम भूले मैं क्या गाऊँ जुही-सुरभि की एक लहर से निशा बह गई डूब तारे । अश्रु-बिन्दु में डूब-डूब कर दृग तारे ये कभी न हारे ॥' -रामकुमार वर्मा इसमें व्यतिरेक अलङ्कार की ध्वनि है । आकाश के तारे तो डूबकर हार जाते हैं फिर दिखाई नहीं पड़ते हैं और सुबह को ही डूबते हैं, नेत्र के तारे हर समय डूबे रहते हैं और फिर भी नहीं हारते । इसमें एक सौन्दर्य यह भी है कि तारों के सम्बन्ध में डूबना लक्ष्यार्थ में आया है और आँखों के तारों के सम्बन्ध .. में अभिधार्थ में आया है । अलङ्कारध्वनि के साथ इसमें करुणा की ध्वनि निकलती है, रसध्वनि भी है । व्यतिरेक अलङ्कार वहाँ होता है जहाँ उपमेय में कुछ ऐसी विशेषता दिखाई जाय जो उपमान में न हो । तारे में जो यमक का शब्दालङ्कार है वह स्पष्ट है, व्यतिरेक ध्वनित है।। असंलचयक्रमव्यङ्गयध्वनि :-रस और भाव के सभी उदाहरण इसके भीतर आते हैं। अलङ्कारध्वनि का भ्रमरगीतवाला उदाहरण रसध्वनि का भी उदाहरण है। ध्वनिसम्प्रदायवालों ने रस का वर्णन असंलक्ष्यक्रमव्यङ्गय ध्वनि के ही अन्तर्गत किया है। काव्यप्रकाश और पोद्दारजी की 'रसमजरी' में ऐसा ही है। लक्षणामूलक ध्वनि :-इस ध्वनि के अन्तर्गत अर्थान्तरसंक्रमितवाच्य- ध्वनि को, जो उपादानलक्षणा पर आश्रित है, गिना जाता है । नीचे के उदा- हरण में पुनरुक्ति के कारण वाच्यार्थ में बाधा पड़ी और उसका लक्षणा द्वारा शमन किया गया है। .. 'पर कोयल कोयल बसन्त में, कोया कौना रहा अन्त में यहां पहले पाया' हुमा 'कोयल' शब्द तो जाति का वाचक है और दूसरी बार आये हुये 'कोयल' शब्द द्वारा उसके गुण व्यञ्जित हैं । 'कौना कौना' में भी यही बात है। यहाँ पर एक की श्रेष्ठता और दूसरे की हीनता व्यञ्जित होती है। इस प्रकार की ध्वनि का बोलचाल में बहुत प्रयोग होता है। ___ अत्यन्ततिरस्कृत अविवक्षितवाच्यध्वनि :-- 'मातहि पितहि उरिन भये नीके । गुरिनु ऋण रहा सोच बड़ जी के ॥' -रामचरितमानस (बालकाण्ड)