पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२९२

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२५२ सिद्धान्त और अध्ययन साथ एकमात्र प्रयोजन के सम्बध को न रखकर श्रानन्द के सम्बन्ध को स्थापित कर दिया है। प्रयोजन के सम्बन्ध में हमारी दीनता है; अानन्द के सम्बन्ध में हमारी मुक्ति है।' -साहित्य (सौन्दर्य-बोध, पृष्ठ ३३) इसी तरह सौन्दर्य-बोध की यथार्थ परिपक्वता, प्रवृत्ति की चञ्चलता और असंयम के साथ कभी एक ही स्थान पर नहीं रह सकती। दोनों परस्पर- विरोधी हैं।' -साहित्य (सौन्दर्य-बोध, पृष्ठ ३८) 'हम मङ्गल को सुन्दर कहते-~~-वह अावश्यकता को पूर्ण करने की दष्टि से नहीं । "लक्षण राम के साथ-साथ बन को गए, यह बात वीणा के तारों के समान एक सङ्गीत को बजा देती है. हम यह बात इसलिए नहीं कहते हैं क्योंकि यदि छोटा भाई बड़े भाई की सेवा करे तो इससे समाज का कल्याण होता है । हम यह बात इसलिए कहते हैं क्योंकि यह बात सुन्दर है । यह बात सुन्दर क्यों है ? बात यह है कि जितनी भी मजल वस्तुएं हैं उनका समस्त संसार के साथ एक गम्भीर सामन्जस्य है। उनका समस्त मनुष्यों के मन के साथ एक निगूढ़ मेल है । यदि हम सत्य के मङ्गल का पूर्ण सामन्जस्य देख सके तो फिर सौन्दर्य हमारे लिए अगोचर नहीं रहता हमारे पुराणों में लचमी केवल सौन्दर्य और एश्वर्य की ही देवी नहीं है वह मशाल की भी देवी है। सौन्दर्य-मूर्ति ही मङ्गल की पूर्ण मूर्ति है और मङ्गल मूर्ति ही सौन्दर्य का पूर्ण स्वरूप है। -साहित्य (सौन्दर्य -बोध, पृष्ठ ४३ तथा ४४) बेडले----ोडले (A. C. Bradley) ने भी काव्य के लिए काव्य (Poetry for Poetry's sake) वाले लेख में इस पक्ष का समर्थन किया है किन्तु उन्होंने काव्य या कला को स्वतन्त्र और निरपेक्ष रखते हुए यह माना है कि शुद्ध कला के दृष्टिकोण से कला के मूल्य को कला के ही मापदण्ड से, जो सौन्दर्य का है, नापना चाहिए लेकिन नागरिक के दृष्टिकोण से यह आवश्यक नहीं कि कलाकार की सभी कृतियाँ प्रकाश में प्रायें । यही क्रोचे का भी मत है। ब्रेडले ने बतलाया है कि रूसेटी (1Rossetti) ने अपनी एक कविता को जिसे परम मर्यादावादी टेनीसन ने भी पसन्द किया था लोकमर्यादा के भङ्ग होने के भय से प्रकाश में नहीं आने दिया । इसके सम्बन्ध में भेडले साहब का कथन है कि उसका यह निर्णय नागरिक की हैसियत से था कलाकार की हैसियत से नहीं, लेकिन प्रश्न यह हो सकता है कि क्या कलाकार नागरिक नहीं है।