पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/३०७

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समालोचना के मान-- कलावाद की व्याख्या और अन्य मत. २७१ में ध्वन्यात्मक व्यजनाएँ अधिक हैं, शैली में घ्राण-सम्बन्धी चित्र अधिक हैं तो कीट्स में स्पर्श-सम्बन्धी चित्रों का प्राधान्य है । निरालाजी का काली वस्तुग्नों की ओर झुकाव है और पन्तजी का श्वेत वस्तुओं की अोर ( शायद वैयक्तिक वर्ण का प्रभाव हो ) यह बात निरालाजी ने मुझे स्वयं बताने की कृपा की थी। लेकिन इन सब प्रकारों की आलोचना की बहुत-कुछ हँसी उड़ाई जा चुकी है। टी० एस० इलियट ने नो इस प्रकार को पालोचनामों से पुरानी निर्णयात्मक आलोचनाओं को श्रेष्ठता दी है। देखिए 'Traditions and Experiment in Present-Day Literature' (Pages 198-215) में संग्रहीत . इलियट' का 'Experiment in Literature' शीर्षक लेख। इलियट का कथन है कि पालोचना साहित्य से सम्बन्धित न रहकर इतिहास, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, नीतिशास्त्र आदि की अङ्गस्वरुपा बन जाती है। 'माथे हाय मूदि दोउ लोचन । तनु धरि सोच लाग जनु सोचन ॥ गति और स्थिरता मिला हुअा चित्र साकेत से दिया जा सकता है :-- 'पैरों पड़ती हुई उर्मिला हाथों पर थी।" . रामचरितमानस ( अयोध्याकाण्ड) गति और ध्वनि के मिल हुए विन्न रासपंचाध्यायी में अच्छे मिलते है :- 'नूपर, कंकन, किंकिन करतल मंजुल मुरली । ताल, मृदंग, उपंग, चंग, एकहि सुर जुरली ॥ तैसिय मृदु-पद-पटकनि, चटकनि कट तारन की । खटकनि, मटकनि, झलकनि, कल कुण्डल, हारन की॥' -रास-पञ्चाध्यायी (श१२, १३) पन्तजी की कविता में गन्ध के चित्र भी मिलते हैं । सरसों की गन्ध का चित्र देखिए :--- 'उड़ती भीनी तैलाभ गन्ध, फूली सरसों पीली पीली । लो, हरित धरा से झाँक रही, नीलम की कलि, तीसी नीली ॥' -आधुनिक कविः२ (ग्राम-श्री, पृष्ठ ६१) एक स्पर्श का चित्र लीजिए :- ... 'मखमली टमाटर हुए लाल, . मिरचों की बड़ी हरी थैली ।' ........ . . प्राधुनिक कविः२ (ग्राम-श्री, पृष्ठ ६२ )