पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/३१०

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२७४ सिद्धान्त और अध्ययन व्यक्ति में अधिक सामजस्य उपस्थित करेगा। रिचई के शब्द इस प्रकार ___The importance of an impulse. it will be Sat, coun be definel for our purposes as the extent of the disturbance of other impulses in the individuals suctivities which the thw.arting of the impulses involves.' ___ ---Principles of Criticisun (Pauga b8) इसके सम्बन्ध में केवल यह आपत्ति उठाई जा सकती है कि इसमें व्यक्ति को अधिक महत्त्व मिलता है। प्रवृत्ति की महत्ता भी व्यक्ति पर ही निर्भर रहती है । एक विषयो की वासना-सम्बन्धी प्रवृत्तियों के कुण्ठित होने में उसके सारे मानसिक संस्थान में गड़बड़ी पड़ जाती है और एक प्रकार से उसके सारे अजर-पञ्जर ढीले हो जाते हैं। हमको व्यक्ति की वृत्तियों के पारस्परिक सामञ्जस्य के साथ समाज में व्यक्तियों के सामञ्जस्य की बात पर भी ध्यान रखना आवश्यक है। __मावर्स ने व्यक्ति की अपेक्षा समाज को अधिक महत्ता दी है और उनका मानदण्ड प्रत्यक्ष और विषयगत है। वे प्राथिक मूल्यों को ही प्रधानता देते हैं और उन्हीं को सामाजिक विकारा की प्रेरक शक्ति मानते हैं। जो साहित्य माथिक मूल्यों को सुलभ बनाने में सहायक होता है वह मार्शवादी पालोचना- पद्धति में श्रेष्ठ गिना जाता है। हमारे यहाँ के प्रगतिवाद ने उस मानदण्ड के अनुकूल साहित्य भी लिखा है और आलोचना-पद्धति का भी अनुसरण किया है। हिन्दी में इस पद्धति के पालोचकों में शिवदानसिंह चौहान, प्रकाशचन्द्र गुप्त, रामविलास शर्मा आदि प्रमुख हैं । इस पद्धति में सबसे बड़ी खराबी यह है कि इसमें आर्थिक मूल्यों को इतनी महत्ता दी गई है कि अन्य मूल्य दब-से जाते हैं। इसके अतिरिक्त वर्ग-संघर्ष, जो एक आवश्यक बुराई के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, उस पद्धति में ध्येय-सा बन गया है। प्रगतिवादी वालोचना की

सबसे बड़ी देन यह है कि उसने पालोचना में जीवन के साथ सम्पर्क के मूल्य

को ओर ध्यान आकर्षित किया। सिद्धान्तरूप से प्राचार्य शुक्लजी ने भी यही किया था और उन्होंने छायावाद-रहस्यवाद को पलायन-वृत्ति का प्रगतिवादियों का-सा ही जोरदार विरोध किया था। इस प्रकार के इस अंश में प्रगतिवाद के अग्रदूत थे और उन्होंने उसके लिए बहत-कुछ मार्ग प्रशस्त कर दिया था किन्तु उन्होंने वर्ग-भेद को भारतीय कार्य-विभाग-व्यवस्था के रूप में आवश्यक (भाना है।