पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/३४

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( ३० ) लोचन'-का-सा कोई क्रमवद्ध साहित्य-शास्त्र नहीं लिखा तथापि उनके स्फुट विचार भी बड़े महत्त्व के हैं, वे 'चिन्तामणि' के दोनों भागों और रस-गीमांसा में आई हुई स्फुट टिप्पणियों में संग्रहीत हैं । डाक्टर सूर्य कान्त शास्त्री को 'साहित्य-मीमासा' छोटा-सा ग्रन्थ है। उसमें पाश्चात्य का प्रभाव 'साहित्यालोचन' से भी कुछ अधिक है। उसमें उदाहरण अधिकांश में विदेशी साहित्य के आये हैं। साहित्य-शास्त्र के विशेष प्रकरणों को लेकर जो प्रयत्न हुए हैं उनमें सुधांशुजी का 'काव्य में अभिव्यञ्जनावाद' और श्री पुरुषोत्तमजी का 'आदर्श और यथार्थ' विशेष महत्त्व का है । डाक्टर किरणकुमारी गुप्ता ने भी 'हिन्दी काव्य में प्रकृति-चित्रण' पर एक सुन्दर पुस्तक लिखी है। नाटकों और कहानियों तथा नाटकों के टेकनीक पर भी कई पुस्तकें निकली हैं। इनके लेखकों में श्रीविनोदशङ्करदास, सेठ गोविन्ददास, श्रीब्रजरत्नदास, डाक्टर सत्येन्द्र प्रभृति के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । हमारे कवियों ने भी आलोचनात्मक साहित्य की श्रीवृद्धि की है। कविवर प्रसाद के 'काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध' और 'महादेवीजी का विवेचना- त्मक गद्य (गङ्गाप्रसाद पाण्डेय द्वारा सम्पादित) इसके अच्छे उदाहरण हैं। पन्तजी की 'पल्लव' तथा 'माधुनिक कवि' की भूमिका, निरालाजी की 'प्रबन्ध- प्रतिमा', दिनकर की 'रेणुका' और 'रसवन्ती' की भूमिकाएँ आदि भी इस दृष्टि से पठनीय हैं। हाल में और भी कई प्रयत्न हुए हैं, उन सबका नामोल्लेख भी करना कठिन है। उनमें से कुछ ये हैं—'साहित्य' (शिवनारायण शर्मा), 'साहित्या- लोचन के सिद्धान्त' (शिवनन्दनप्रसाद) आदि । इन सबमें श्रीरामदहिन मिश्र का 'काव्यालोक' विशेष महत्त्व का है। ____ यह मैं पहले ही निवेदन कर चुका हूँ कि मेरे 'नवरस' में अन्य काव्याङ्गों का वर्णन केवल प्रसङ्गवश ही हुआ है। यह पुस्तक और इसका दूसरा भाग . (काव्य के रूप) इस दृष्टि से लिखे गये हैं कि विद्यार्थियों प्रस्तुत संस्करण को काव्याङ्गों रस, रीति, लक्षणा, व्यञ्जना, अलङ्कारों - आदि का सामान्य परिचय हो जाय और उनका काव्य में स्थान समझ में आजाय । उसीके साथ ये वर्तमान साहित्यिक समस्याओं और वादों से भी अवगत हो जायें । इनमें पूर्व और पश्चिम के मतों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है किन्तु इनमें वर्णित सिद्धान्तों का (कम-से-कम पहले भाग का) मूल स्रोत भारतीय साहित्य-शास्त्र है। समालोचना के प्रकार और सिद्धान्त अवश्य विदेशी परम्परा से प्रभावित हैं। पहले भाग में काध्य के