पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/९९

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काव्य के हेतु-साहिस्यिक चोरी है या नहीं ? प्राचार्य राजशेखर ( १० वीं शताब्दी) ने तो वैश्यों । के साथ सब कवियों को चोर ठहराया है (यदि वे प्राचार्य जीवित होते तो वैश्य लोग उन पर मान-हानि का दावा अवश्य करते और मैं भी दावे में शामिल हो जाता ), देखिए :- _ 'नास्त्यचौरः कविजनो नास्यचौरी वणिज्जनः' -काव्यमीमांसा (पृष्ठ ६१) कहा जाता है एक बार महाकवि गोल्डस्मिथ ने बिल्कुल मौलिक लिखने का सङ्कल्प किया था किन्तु इस सङ्कल्प के कारण उन्हें तीन महीने तक ठाली बैठना पड़ा था। यह बात तो नहीं है कि विचारों की मौलिकता असम्भव है किन्तु बहुत-कुछ मौलिकता अभिव्यक्ति की नवीनता में है। अभिव्यक्ति की नवीनता से विचार में भी नवीनता आजाती है, इसके अतिरिक्त विचार भी कोई स्थिर वस्तु नहीं और न वह सीमाबद्ध है। कोई कवि किसी विचार को साङ्गो- पाङ्ग नहीं उतार लेता है। विचार के भी कई पहलू होते हैं । जो पहलू जिसको अपील करता है वह उसको अपने विवेचन का विषय बनाता है और उसमें नवी- नता पैदा कर देता है। नवीनता को भी औचित्य की सीमा के भीतर रहना होता है । नवीनता और मौलिकता का अर्थ उच्छृङ्खलता नहीं । यदि ऐसा हो तो पागल सबसे अधिक मौलिक कहा जायगा । साहित्यिक चोरी को अंग्रेजी में 'Plagiarism' कहते हैं। हमारे यहाँ ___ इसकी कई श्रेणियाँ मानी गई है । नीचे के श्लोक में ये साहित्यिक चोरी, बतलाई जाती हैं :- ... 'कविरनुहरतिच्छायामर्थ कुकविः पदादिकं चौरः । ... सर्वप्रबन्धह. साहसकत्रे नमस्तस्मै ।' -कविरहस्य (पृष्ठ ७६ के उद्धरण से उद्धृत) अर्थात् दूसरों की छाया-मात्र को लेने वाला कवि कहलाता है, भाव का अपहरण करने वाला कुकवि कहलाता है, जो भाध के साथ शब्दावली का भी अपहरण करता है वह चोर कहलाता है और जो पद, वाक्य और अर्थ समेत सारे काव्य का अपहरण करता है उसं साहस करने वाले को दूर से ही नमस्कार है। अच्छा कवि तो यदि छाया भी ग्रहण करता है तो उसमें एक नवीन जीवन भर देता है । वह अपने पूर्ववर्ती कवि की कृतियों में नया चमत्कार उत्पन्न कर देता है। इस बात को बिहारी के सम्बन्ध में पं० पद्मसिंह शर्मा में अच्छी तरह दिखाया है। मिल्टन ने कहा है कि बिना सौन्दर्य प्रदान किये