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उपन्यास। - - - - - SAREENSERRHOSARNIVERSINHEHRAMRITERATUREBHEHRERROREA फिर विचारपति इस ओर झुके। मजिष्टट,-"मनसाराम ! तुम इस लड़के को क्यों चुरालाएथे ?" मनसाराम,-"जी, हजूर मां-बाप ! जिमीदार के हुकुम से ।": मजिष्ट ट,-" बाबूरामशंकरदास! क्या आपने सचमुच ऐसा हुकुम दिया था ? रामशर,-"जी हां! धर्मावतार!" मजिष्ट्रट,-"क्यों ऐसी आज्ञा दी ?" रामशङ्कर,-"दोनयंधु ! इम बालक के पिता मेरे परमात्मीय थे। मरने के समय घे इसे मुझे दत्तकपुत्र की तरह दे गए थे, इसलिये इस बालक को, और बलभद्रबाबू की मित्रता स्मरण करके उनकी कन्या को मैंने मादर से अपने घर में रक्खा था। एक दिन-न जाने क्यों-वह लड़की अपने भाई को लेकर चुपचाप रात के समय भाग गई, इसीलिये इस फकीर से इस बालक को मैंने मंगवा लिया।" __ मजिष्ट्रट,- फकीर को क्यों नियुक्त किया था ? खैरबलभद्रबाबू की मत्यु कब हुई थी ? रामशङ्कर,--" भिक्षुक सब जगह जाते हैं, “इसीसे फकीर को इस काम में रखा था।" मजिष्ट्रट,-" वह बात रहने दो, बलभद्रदास कप मरे हैं ?". रामशङ्कर,-"मृत्यु तो-मृत्यु! हां! दो मास हुगा होगा। मजिष्ट्रट,-"वे कहां मरे थे ?.. रामशङ्कर,-"मृत्यु ?-उनके घर ही मत्यु हुई थी।" मजिष्ट्रट,-"बाबू हरिहरप्रसाद ! आपको क्या वक्तव्य है ?" हरिहर,-'सब बातें बलभद्रबाबू की कन्या और पुत्र से पूछिए?" मजिष्ट्रेट.-"अनाथिनो ! तुम्हारे पिता कोमरे कितने दिन हुए ?". अनाथिनी,-"महाशय ! उस सोमवार की रात को ! " इस समय सुरेन्द्र ने बहिन को पहिचान कर हर्षपूर्वक आनन्दध्वनि मचाई । अनन्तर रामशंकर के पास से अनाथिनी के समीप जाकर बातें करने के लिये वह सुयोग खोजने लगा, पर कुछ नहीं हुओ, क्योंकि बिचारपति के अनुरोध से उसे चुप और शान्त होना पड़ा। मजिष्ट्रेट,-" अनाथिनी ! तुम्हारे पिता ने रामशंकरदास