पृष्ठ:सुखशर्वरी.djvu/३२

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सुखशर्वरी। -- को सुरेन्द्र अर्पण किया है ? " अनाथिनी,-" महाशय ! यह बात बिलकुल मिथ्या है । पिता की मृत्यु के समय रामशंकरदास कहां थे ? सुतरां बाबा सुरेन्द्र को उन्हें नहीं देगए हैं।" __ मजिष्ट्र ट,-'अनाथिनी ! तुम जरा चुप होजाओ। सुरेन्द्र ! तुम्हें अपने बाप की याद आती है ? " सुरेन्द्र.-" हां ! थोड़ी थोड़ी। मजिष्ट्रट,-" वे इस समय कहां हैं ? बता सकते हो ?" सुरेन्द्र,-" बाधा कहां ? बाबा स्वर्ग में हैं।" मजिष्ट्र दे,-" वहां वे कब गए हैं ? कह सकते हो ? " सुरेन्द्र,-"कब गए हैं! कब मरे हैं ! सो ठीक कह सकता हूं।" _मजिष्टट,-"अच्छा! कहो तो सही, वे कब मरे हैं ?" सुरेन्द्र,-" जिस दिन मेरे उस घर में बड़ी जाफत थो, उस दिन बाबा मुझे तीसरे पहर निमंत्रण जीमने ले गए थे। अनन्तर उसी दिन, रात को मुझे गोदी ले और जीजी का हाथ थाम कर बाबा घर से बाहर हुए । पथ में उन्होंने मुझे गोद से उतार दिया था। बाबा से मैंने पूछा कि, 'कहां जागोगे ? ' तो वे कुछ बोले नहीं। इसके बाद एक मरघट में पहुंच कर जीजी की गोद में सिर पर कर वे सो गए । थोड़ी देर के पीछे उन्होंने आंखें खोली, फिर बन्द कर ली । मैंने कितना पुकारा, परन्तु वे फिर नहीं बोले । तब मुझसे जीजी ने कहा कि, 'बाबा मर गए, स्वर्ग में गए।" बिचारक एक संभ्रान्त और चिन्ताशील व्यक्ति थे, और गाँव के समीप ही उनका बंगला था। उस दिन के 'भोज' की बात उन्हें स्मरण थी, सुतरां रामशंकरदास झूठे समझे गए। मंजिष्ट्र ट ने सुरेन्द्र से कहा,-"तुमने अच्छा इजहार दिया। हां तुम्हारे पिता कहां जाते थे, तुम कुछ जानते हो ?" _सुरेन्द्र,-"यह सब मैं कुछ नहीं जानता। बाबा ने जीजी से कहा होगा, वह जाने !" मजिष्ट्र ट,-"अनाथिनी ! तुम्हारे पिता घर छोड़कर कहां जाते थे? तुम जो कुछ जानती हो, सब कहो।" - अनाधिनी,-"महाशय ! पहिले रामशंकरदास मेरे पिता के