पृष्ठ:सुखशर्वरी.djvu/४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

उपन्यास । sawanawwa u nive लिये मेरा मन ऐसा दग्धप्राय होरहा है और उन्हीं के लिये मैं सदा सोच में डूबी रहती हूं । हाय ! क्या मेरा ऐसा भाग्य है कि वे मुझे मिलेंगे?" __ सरला,-"ठीक है। वे घोड़े पर चढ़कर ठीक उसी काम के लिये जाते थे। क्या सर्वनाश! हाय! कैसे उनका उद्धार होगा? यह हाल बाया से कहूं क्या ?" अनाथिनी,-"नहीं, अभी उनसे न कहो।" यों कहकर अनाथिनी ने मन में कहा-"इतने दिन हुए, हाय ! अबतक क्या वे इस संसार में जीते-जागते रहे होंगे ! हा!" सरला,-'तो, भई ! कौन उपाय करना चाहिए ? " अनाथिनी,-"देखो! आज रात को मैं अकेली वहां जाकर कापालिक की बिनतो करके उन्हें छुड़ा लाऊंगी। मुझे ऐसा विश्वास होता है, कि मेरी बिनती, पर वह उन्हें छोड़ देगा।" सरला,-"नहीं नहीं, मैं भी तुम्हारे संग चलंगी। मैं जो यहां रहूंगी तो बाबा तुम्हारा हाल पूडेंगे, तब मैं क्या कहूंगी? इसलिये मैं भी संग ही चलंगी। और देखो, राह बाट में एक आदमों जरूर संग चाहिए, सो प्रेमदास रसोइये को लेलंगी।" __अनाधिनी,-प्रेमदास पथकष्ट सहना स्वीकार करेगा ?" सरला,-प्रेमदास विवाह के लिये इतना पागल है कि हद से ज्यावे ! वह भी ब्याह के लिये ब्याकुल है और शायद किसी सुन्दरी पर मरता है। बस जहां उससे यों कहा कि, 'प्रेमदास ! चलो, तुम्हारा ब्याह करादूंगी,' तहां बस चुपचाप यह सब दुःख सह लेगा। पर है वह बड़ा डरपोक !" . अनाशिनी,-"हां! वह तो पोंगा हई है, तो भी उसका संग रहना अच्छा होगा; पर उसे यह वृत्तान्त न मालूम हो।" सरला,-"अच्छा ।" , अनन्तर दोनों चुपचाप अपने चलने की तयारी करने लगी और रात के आठ बजने पर अनाथिनी, अरला और प्रेमदास घर से चुपचाप एक ओर को चलदिए । meres