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श्री:
द्वितीय संस्करण की भूमिका ।
यह उपन्यास सन् १८८८ ई० में लिखा गया और सन् १८८१ ई० में भारतजीवन प्रेस में छपा था । आज ईश्वरानुग्रह से इतने दिनों के बाद यह दूसरी बार छापा जाता है। उपन्यासप्रेमियों ने इसे बहुत पसन्द किया है, इसलिये हम उनके कृतज्ञ हैं।
वृन्दावन }रसिकानुगामी,
११-८-१६ } श्रोकिशोरीलालगोस्वामी