________________
सुखशर्वरी। - ww - - AAMANNAAP.. rnrAAAAAAAvr. निवास में आग लगा दी थी और वह भस्म होरहा था! अग्नि सुवदना की कोठरी तक पहुंच गई थी, पर अनाथिनीजी पर खेलकर भीतर घुस गई। उसने सब कोठरियां देखीं, पर सभी खाली पड़ी थी। अनाथिनी के मन से अब उदासीन की सभी चिन्ता दूर हुई, केवल, 'सरला, सुबदना और प्रेमदास की दशा क्या हुई,' इसी सोच से वह अतिशय कातर होने लगी। उसने विक्षिप्तप्राय होकर चिल्लाकर पुकारा,-" सरला, सरला ! प्रेमदास, प्रेमदास ! सुबदना, सुबदना!!!" ... इसी समय न जाने किसने पीछे से उसका अंचल खींचकर चंचल होकर पूछा, "सरला. सरला! कहां है ? कहां है, सरला?" अनाथिनी ने मुख फेर कर देखा कि, "वही उदासीन सामने खड़ा है !!!" अनाथिनी क्या उत्तर देती ? ठहरकर उदास होकर बोली."सरला इसी घर में थी, इस समय शायद वह किसी दूसरी जगह गई है!" उदासीन ने आग्रह से पूछा,-"कौन सरला ? हरिहरबाबू को कन्या?" अनाथिनी,-"हां! वही! " अनाथिनी का प्रत्युत्तर सुनकर उदासीन हर्षित हुआ। इसी समय एक क्षीणस्वर उन दोनों के कानों में गया।तब दोनों उसस्थर को लक्ष्य करके दौड़े, और जाकर उन दोनों ने देखा कि,-"हाथपैर बँधा हुआ एक व्यक्ति पड़ा है! " __“यह कौन है ?" उन दोनों ने उसे चीन्हा; अनन्तर यत्न के सहित उसे एक निरापद स्थान में वे दोनों ले गए ।