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भन्मदास,-"सच कहकर प्राण थोड़े ही देना था ! " सुबदना,-वे पुलिसवाले होंगे । गच्छा उन्होंने क्या कहा ? और वे कहां गए ?" प्रेमदास,-"वे मेरी बात सुनकर खिलखिलाकर हंस पड़े और जङ्गल की ओर चले गए। " सुबदना,-"तो तुम इतना क्यों चिल्लाते थे ?" प्रेमदास,-"मैंने समझा कि तुम्हें तो वे नहीं उठा ले गए ! और आते आते उनके डर से चिल्लाया था। सुषदना,-"तो ऐसे डरपोक से मैं ब्याह न करूंगी!" प्रेमदास एकाएक मृयमाण होकर बोले,-"तो अब यम से भी मैं न डरूंगा।" . सुषदना ने हंसकर कहा,-"तो करूंगी।" प्रेमदास का मुख कुम्हिलाकर सहसा खिल गया। सुबदना के भी हर्ष की सीमा न रही ! उसने अपने हँसोड़ स्वभाव के लायक अच्छा पात्र पाया । अनन्तर सुखदना प्रेमदास के संग प्रेम की बातें करने लगी। उदासीन और सरला की बात सुनकर प्रेमदास बड़े खुश हुए, और सरला से हंसकर बोले कि, "देवी ! मुझे बर देने से तुम्हें भी तुरन्त बर मिला!" प्रेमदास की बातों से सभी प्रसन्न होते थे। अनन्तर सब कोई राधाकृष्ण को दण्डवत् करके चले। सरला ने सबदना को भी अपने संग ले लिया।