अपनी चिन्ता से डूबा था। कन्या और पुत्र कहां जायगे, मित्र के घर नहीं पहुंच सके। इत्यादि चिन्ता उसके मन में दौड़ रही थी।
थोड़ी देर के बाद उसने दीर्घनिश्वास लेकर धीमे और विकृत स्वर से कहा.-"बेटी-जो-सोचा था-सो-नहीं-हुमाहा!"
बालिका ने आग्रह से पूछा,-"बाबा! क्या सोचा था ?"
वृद्ध ने कुछ उत्तर नहीं दिया । मालूम होता था कि उस समय उसे बोलने की शक्ति नहीं थी। बड़े कष्ट से बालक का हाथ लेकर बालिका के हाथ में पकड़ा दिया और एक बार दोनो की ओर देख कर आंखें मुदलीं।
बालिका करुणापूर्वक बोली,-"हाय ! बाबा मुझे किसके पास छोड़े जाते हो ?" उस समय कदाचित वृद्ध की श्रवणेन्द्रिय प्रबल थी, सुतरां बालिका की कातर ध्वनि का उत्तर न देकर केवल अपना दोनों हाथ वृद्ध ने आकाश की ओर उठाया। मन में दारुण दुःख हुआ और मुंदे नयनों के कोनों से चौधारे आंसू बह चले अभीतक वद्ध पृथ्वी के मोहजाल में जड़ित था। धीरे धीरे आँसू थम्हे, मायाजाल छिन्न हुआ और वद्ध का प्राणवायु उड़ गया!
निश्वास के रुकने से बालिकाने जाना कि पिता परलोकगामी हुए ! तब बहुत सोच विचार कर अपनी गोदी से टनका मस्तक उठाकर पथ्वी पर रख दिया । बालक वद्ध को मृत्यु का हाल कुछ नहीं जानता था, वहीं बहिन के पास ही बैठा था।
न जाने क्या सोच समझकर वह बोला,-"जीजी ! बाबा तुम से क्या कह गए हैं ? कुछ देने के लिये ?"
बालिका उस समय चुपचाप रो रही थी, इस लिये उसने भाई की बातों पर कान नहीं दिया। इससे बालक कुछ क्रुध होकर बोला,-"मैं बाबा को उठा कर अभी पूछता हूं।"
यह कहकर बालक मृत पिता के समीप आकर जोर से पुकारने और उन्हें हिलाने लगा बोला,-"बाबा बाबा! जो तुम कह गए हो, सो जीजी न देती हैं, न बोलती हैं।"
पिता न जागे और न उन्होंने कुछ उत्तर दिया।यह देखकर बालक क्रय होकर कहने लगा,-"उठते क्यों नहीं बाबा ? मुझे बड़ा डर लगता है। न उठोगे तो मैं छुरी से अपना हाथ काट डालंगा