पृष्ठ:सूरसागर.djvu/११७

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(२४) सूरसागर। संदेश सुनायो। कहयो हारिजू जो गीता गायो॥सो स्वरूप मम हृदये आन ।रहियो सदा करत मम | ध्यान ॥ तव अर्जुन मन धीरज धारािचल्यो संगलै जेनर नारि॥तहँ भिल्लनिसों भईलराई । लूटे विन सव श्याम सहाई ॥ अर्जुन बहुत दुखित तव भए। इहँ अपसगुन होत दिन नए ॥ रोवें वृपभ तुरंग अरु नाग । झ्याल दिवस निशि बोलें काग ॥ कंपै भुव वर्षा नहिं होई । भए सोच चित यह नृप जोई ॥ इहि अंतर अर्जुन फिरि आयो । राजाके चरणन शिरनायो। राजा ताको कंठ लगाई। कहयो कुशल हैं यादवराई ॥ बल वसुदेव कुशल सब लोइ । अर्जुन यह सुनिदान रोइ॥ राजा कहयो कहा भयो तोहितू क्यों कहि न सुनाव मोहि ॥काहू असत्कार तोहि कियोकै कहि दानन द्विजको दियो ॥ कै शरणागत को नहिं राख्यो। कै तुमसों काहू कटु भाख्यो । के हरिजू भए अन्तर्ध्यान । मोसों कहि तू प्रगट बखान ।। तव अर्जुन नैनन जल डारि । राजासों किय वचन उचारि ॥ सूरज प्रभु वैकुंठ सिधारे । तेहिविन को मम काज सँवारे ॥ १९८॥ राग धनाश्री ॥ हरि बिनु को पुरवै मेरो स्वारथामुंडहि धुनत शीश करमारत रुदन करत नृप पारथ । थाके हस्त चरणगति थाकी अरु थाक्यो पुरुपारथ । पांच वाण मोहि शंकर दीने तेज गए अकारथ॥ जाके संग सेतुबन्धकीनो अरु जीत्योमहाभारथागोपी हरी सूरके प्रभु विन घटत न प्राण पदारथ ॥ १५९ ॥राग विलावल। यह सुनिराजारोइ पुकारे। भीमादिक रोये पुनि सारे ॥ रोवत सुनि कुंती तहां आई। कहयो कुशल हैं यादवराई ॥ अर्जुन कहयो सवैलरि मुए।हरि विनु सब अनाथ हम हुए ॥ कुंती प्राण तजे धरि ध्यान ।जीवन मरन उतै भल जानाराज्य परीक्षित को नृप दीना।वज्रनाम मथरापति कीनाद्विपदसुता समेत सबभाई । उत्तर दिशा गए हाई ॥योग पंथ करि उन तनु तजे । सूर सबै ते हरिपद भजे ॥ १६० ॥ अथ श्री भगवान् परीक्षित गर्भ रक्षा, जन्म वर्णन ॥ हरि हरि हरि हरि सुमरन करौ । हरि चरणार्विद उर धरौ ॥ हरि परीक्षितै गर्भ मँझार। राखि लियोनिज कृपा अधार । कहौं मु कथा सुनौ चितलाई । जो हरिं भजै रहै सुख पाई।भारत युद्ध वितत जब भयो । दयोधन अकेल तहँ रह्यो॥ अश्वत्थामा तापैजाइ। ऐसी भांति कह्यो समुझाइ॥ हमसों तुमसोंवाल मिताई। हमसों कछु न भई मित्राई॥ अब जो आज्ञा मोको हो । छाडि विलंब करों अव सोई॥ राज्य गयेको दुःख न सोई।पांडव राजभयो जो होई। उनके सुएहीय सुख होईजो करि सकौ करौ अब सोई ॥ हरि सर्वज्ञ बात यह जान । पांडु सुतनि सों कह्यो वखान ॥ आज सरस्वति तट रही सोई । पै यह बात न जानै कोई ॥ पांडव हरिकी आज्ञा पाइ। तजि गृह रहे सरस्वति जाइ ॥ काहू सों यह कहि न सुनाई । वहां जाइ सब रैन विताई । अश्वत्थामा तव इहां आए । द्रौपदीसुत तहां सोवत पाए । उनको शिर लै गयो उतारि । कह्यो दुर्योधन आयो मारि ॥ विनदेखे ताको सुख छयो। देखते दूनो दुख भयो। ए बालक तें वृथा जु मारे । पुनि कुरुपति तजि प्राण सिधारे ॥ अश्वत्थामा भय करि भग्यो।इहां लोग सव सोवत जग्यो।द्रौपदि देखि सुतन दुख पायो । अर्जुनसों यह वचन सुनायो।।अश्वत्थामा जब लगि मारों। तब लगि अन्न न मुखमें डारों॥ हरि अर्जुन स्थपर चढ़ि धाये । अश्वत्थामा चलि आये ॥ अश्वत्थामा अस्त्र चलायो । अर्जुनहू ब्रह्मास्त्र पठायो॥ उन दोनों से भई लराई । तब अर्जुन दोउ लए बुलाई ॥ अश्वत्थामाको गहि लाए । द्रौपदी शीश मुठी मुकराए ॥याके मारे हत्या होई । मूयो जिवत न देख्यो कोई ॥ अश्वत्थामा बहुरि खिसाई । ब्रह्मास्त्रको दियो चलाई ॥ गर्भ परीक्षित जारन गयो । तव हरि ताहि जरन नहिं दयो॥ रूप चतुर्भुज गर्भ मँझार । ताको तासों लियो उवार ॥ जन्म परीक्षित को जब भयो । कह्यो चतु-