पृष्ठ:सूरसागर.djvu/१९५

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- (१०२) . सूरसागर। वनाय । नवकिसोरी मुदितकै बगहति यशुदाजीके पाय॥ चौकेचंदन लीपिकै आरति धरी संजोइ।।। कहत घोपकुमारि ऐसो आनंद जोनितहोइ ।। कार करि अलंकृत गोपिका पहिरे सुभूपण चीर। गाइ वच्छ सँवारि ल्याये ग्वालनकी भैभीर ।। मुदित मंगल सहित लीला करहिं गोपी ग्वाल । हरद अक्षत दूव दधि लै तिलक करहिं ब्रजवाल। एक हेरी देहि गावहिं एक भेटहिं धाइ। एक एक न गनै काह इक खेलावत गाइ ॥ एक विरध किसोर बालक एक यौवन योग कृष्णजन्म सुप्रेमसागर क्रीडत सव ब्रजलोग ॥ प्रभु मुकुंदके हेतु नवतनु होहि थोप विलास । देखि व्रजकी संपदाके फूलहैं सुरजदास ॥२०॥ आजु वधायो नंदराइके गोपी गावहिं मंगलचार । आई मंगल कलससाजिकै ताऊपर फलडार। अक्षत रोचन दूवलै चली बहु विधि फल भरे थार ॥ घरन घरनते गावत चली ब्रजवधूझुंड अपार ।। चलीं सब मिलि महरके घर देखन नंदकुमार। देखि मोहन आश पूरी सवै देति अशीश । नंदमहरके लाडिले तुम जिओ कोटि वरीस ॥ उर मेलैहैं नंदरायके गोप सखन मिलि हार।मागध वंदी जन अतिक्रीडत बोलत जैजैकार । महरि दान जु बहुत दीनोअरु दियो नंदराइ॥ ऐसोसुख देखौ सखी जन सूरदास बलिजाइ ॥२१॥ धनि धनि नंद यशोमति धनि जग पावनिरे । धनि हरिलियो अवतार सुधानि दिन आवनरे। दशमास भयो पूत पुनीत सुहावनरे । शंख चक्र सारंग चतुर्भुज भावनरे॥ वनि पनि व्रजसुंदरि चली सुगाइ वधावनरे । कनकथार रोचन | दाधि तिलक वनावनरे। नंद घहि चलि गाइ महरिजहां पावनरे। पाँइनि परि सब वधू महरि बैठाव नरे। यशुमति धनि यह कोखि जहां रहे वावनरे। भले सुदिन भयो पूत अमर अजरावनरे।युग युग जीवहु कान्ह सवनि मनभावनरे।गोकुल हाटवजार करत जुलुटावन।घर घर वनै निसाननगर जुरगाव नरे।अमर नगर उत्साह अप्सरा नचावनरे। ब्रह्म लियो अवतार दुष्टके दावनरे ।दान सबै जो देतवर्षि जनु सावनमागध सूतभाट धन लेत जु रावनरे। चोवा चंदन अवीर गली छिरकावनरे।।ब्रह्मादिक सनकादिक गगन भरावनरे। कश्यप ऋपि सुर तात सुलगन गनावनरे। तीनिझुवन आनंद कंसहि डरावनरे। सूरदास प्रभु जन्मे भक्त हुलसावनरे॥२२॥ राग कल्याण | शोभासिंधु न अंतरहीरी। नंदभवन भरिपूर उमंग चली उनकी वीथिनि फिरति वहीरी ॥ देखी जाइ आजु गोकुलमें घर पर वेचत फिरति दहीरी । कहाँलगि कहाँ वनाइ बहुत विधि कहत नमुख सहसहुनिवहीरी ॥ यशुमति उदर अगाध उदधिते उपजी ऐसी सवन कहीरी । सूरश्याम दोउ इन्द्र नील मणि ब्रजवनिता उरलाइ गुहीरी ॥ २३ ॥ राग काफी ॥ आजुहो निशान वाले नेद महरिके।आनंद मगन नर गोकुल शहरके । आनंदभरी यशोदा उमगि अंग न समाति आनंदित भई गोपी गावति चहरके ॥ दूब दधि रोचन कनकथार लैलै चलीं मानों इंद्रवधू जुरिं पांतिनि वहरके । आनंदित भए ग्याल वालं करत विनोद ख्याल भुजभरि धरि अंकमदै वरहरिके ॥ आनंदमगन धेनु थन स्त्रवै पय फेनु। उमग्यो यमुनजल उछलै लहरके । अंकुरित तरु पान उकठि रहे जेगात वनवेली प्रफुलित कलिन कहरको आनंदित विप्रसुत मागध याचक गण उमगे अशीशदेत तरह तरह हरिके आनंदमगन सब अमर गगन छाए पुहुप विमान चढ़े पहर पहरके । सूरदास प्रभु आइ गोकुल प्रगट भए संतन. भयो हरप दुष्टजन मनदहरके ॥२४॥ माई आजु हो वधायो वाजै नंदगोपराइके । यदुकुल यादव जन्म, आइकमानंदित गोपी ग्वाल नांचें करदै ताल अति अहलाद भयो यशुमतिमाइके। शिर ॥ पर दूवधरि वैठे नंद सभा मधि द्विजन को गाइ दीनी वहुत मंगाइके । कनकमाट मँगाइ हरददही मिलाय छिरकै परस्पर छलबल धाइके ।। आ कृष्णपक्ष भादौ महरके दधिकादौं मोतिन बँधायो । % 3D% 3D