पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. . सूरसागर। . - (१०८) छांडि पगु दीनो जानि सुरन मन संस ॥ सूरदास प्रभु असुरनिकंदन दुनके उरगंस ॥५६॥ राग । बिहाग ॥ यशोदा मदनगुपाल सुवावै । दखि स्वप्न गति त्रिभुवन कंप्यो ईशविरंचि भ्रमावे ।। असित अरुणसित आलस लोचन उभै पलक पर आवै । जनु रवि गति संकुचित कमल युग निशिभलि उडन न पावै ॥ चौंकि चौंकि शिशुदशा प्रगटकरि छवि मनमें नहिं आवाजानौनिशिपतिधार कार । अति अमृत श्रुतिभंडार भरावै ॥ वासउदर उर सति यो मानो दुग्धसिंधु छविपावै । नाभि सरोज प्रगट पद्मासन उतरि नाल पछितावै ॥ कर शिर तर करि श्याममनोहर अलक अधिक सों भावे।। सूरदास मानौ पन्नगपति प्रभु ऊपर फनछावै॥५शाराग बिलावलाअजिर प्रभा तेहि श्यामको पलका. पौठाए।आपुचली गृहकाजको तहां नंद बुलाए। निरखिहरपि मुख चामिक मंदिर पग धारीआतुर नंद आए तहां जहँ ब्रह्म मुरारी।हिँसे तात मुखहरिकै कर पग चतुराई । किलकि झटकि उलटे परे । देवन मुनिपाई।सो छवि नंद निहारिकै तहां महरि बुलाई ॥ निरखिचरित गोपालके सूरज वलि. जाई॥२८॥ रामकली हरपे नंद टेरत महाराआइ सुत सुख देखि आतुर डारिदै दधि टहासमिति दधि यशुमति मथानी ध्वनि रही घर गहरि। श्रवन सुनति न महरि वांत जहां तहां गई चहरि॥ यह। सुनत तब मातु धाई गिरे जाने झहरिराहँसत नंदमुख देखिधीरज तव कहयो ज्यों ढहारश्याम उलटे। परे देखे बढ़ी सोभा लहरि । सूरप्रभु करसेज टेकत कवहूं टेकत ढहीर ॥६९ ॥ महारे मुदित उलटाइकै मुख चुंबन लागी । चिरुजीवो मेरो लाडिलो मैं भई सभागी|एकपास त्रयमासके । मेरो भयो कन्हाई पटक रानि उलटे परे में करौं वधाईनिंद घरनि आनंदभरी बोली ब्रजनाीयह सुख सुनि आई सबै सूरज वलिहारी॥६०गा यह सुख सुनि आई वजनारी। देखनको धाई वनवारी। कोइ युवती आई कोइ आवति । कोउ उठि चलति सुनत सुखपावति ।। घर घर होत अनंद वधाई सूरदास प्रभुकी बलिजाई ।। ६१ ॥ रामकली ॥ जननी देखि छीव वलिजाति ॥ जैसे निधनी धनहि पाइ हरप दिन अरुराति ॥ बाललीला निरखि हरखि धनि धनि धनि बजनारी निरखि जननी वंदन. किलकत त्रिदश पति देता॥धन्य नंद धनि धन्यगोपी धन्य ब्रजके वासाधन्य धरनी करन पावन जन्म सुरजदास ॥ ६२ ॥ विलावछ । यशुमति भाग सुहागिनी हरिको सुत जान । मुख मुख जोरि वतावई शिशुताई ठानें ।। मो निधनीके धनरहै किलकत मनमोहन ।। वलिहारी छविपर भई ऐसी विधि जोवनालिटकत वेसरि जननिकी इकटक चख लावै॥पकरत वदन उठाइके मनही मन भाव।। महरि मुदित हित उरभरे यह कहि मै वारी । नंदसुवनके चरित पर सूरज वलिहारी ॥६३॥ राग सावरी ।। गोद लिये हरिको नंदरानी स्तन पान करावतिहै । बार बार रोहिणिको कहि कहि ।। पलिका अजिर मँगावति ॥ प्रातसमय रवि किरण कौवरी सो कहि सुतीह वतावतिहै। आउ धाम मेरे श्यामलाल आंगन वालकेलिको गावतिहै ।रुचिर सेज लैगई मोहनको भुजा उछीग सुवा वति ॥ सूरदास प्रभु सोई कन्हैया लहरावतिमल्हरावति है ॥ ६ ॥ राग बिलावल ॥ नंदघरनि आनंदभरी सुत श्याम खिलावै । कबहु घुटुरुवनि चलहिंगे कहि विधिहि मनावै ॥ कवहूं | दंतुलीद्वै दूधकी देखों इननैननि । कवहूं कमल मुख बोलिहैं सुनिहीं इन वैननि।चूमति कर पग अधरं । पान लटकति लटचूमति । कहा वरणि सूरज कहै कहा पावै सोमति ॥ ६५ ।। राग पिलावळ । मेरो नान्हरिया गोपाल वेगि वडो किनि होहि । इहि सुख मधुरे वयनहाँसे कबहूँ जननि कहोगे मोहि ॥ यह लालसाअधिक दिन दिनप्रति कवीईशकरै।मोदेखत कंवहूं हँसिमाधव पाद्वैधरनि धरै । हल... 1. घर सहित फिरै. जब आंगन चरण शब्द मुखपाऊं ॥ छिन छिन क्षुधित जात पृयकारन हौंहठि ।