पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२१८

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देशमस्कन्ध-१० (१२६) || तुमही आपुन उठि देखौ निद्रा नैन विशाल ॥ज्यों तुम मुहि न पत्याहु सूरप्रभु सुंदर श्याम तमाल | ॥७९॥ भैरव ॥ उठौ नंदकुमार भयो भिनुसार जगावत नंदकी रानी । झारिक जल बदन पखारौ कहि कहि सारंगपानी ।। माखन रोटी अरु मधु मेवा जो भावे सोलेउ आनी । सूरझ्याम मुख निर खि यशोदा मनही मनहि सिहानी ॥ ८० ॥ विलावल ॥ नंदके लाल रठे जब सोइ । निरखि मुखाविदको सोभा कहि काके मन धीरज होइ ॥ मुनि मन हरन हरन युव तीके रतिमान जाइ सव खोइ । ईषदहास दशन द्युति दामिनि मनि गनि ओपि धरे जनुपोइ ।। नागर नवल कुंवर वर सुंदर मारग जात लेत मनगोइ । सूरश्याम मन हरण मनोहर गोकुल वसिमोहे सब लोइ ॥ ८१ ॥ अथ कलेवाभोगनसमय ॥ भैरव ।। उठिये श्याम कलेऊ कीजै । मन मोहन मुख निरखत जीजा खारिक दाख खोपरा खीरा । करा आम उखरस सीरा ॥ श्रीफल मधुर चिरौंजी आनी । सफरी चिरुआ अरु नय वाणी॥ घेवर फेनी और सुहारी।खोवा सहित खाहु बलिहारी ॥ रचि पिराक लाडू दधि आनों। तुमको भावत पुरी सधानों ॥ तव तमोर रुचि तुमहि खवावों। सूरदास पनवारो पावों ॥ ८२॥ कमलनयन हरि करो कलेवा । माखन रोटी सबजम्यो दधि भाँति भाँतिके मेवाखारिक दाख चिरौंजी किसिमिस मिश्री उज्ज्वल गरी बदाम।सफरी सेव छुहारे पिस्ता जे तरवूजा नाम।। अरु मेवा वहु भांति भांतिहैं पटरसके मिष्टानासूरदास प्रभु करत कलेज रीझे श्याम सुजान ।। ८३ ॥ अथ खेलन समय ॥ रामकली ॥ खेलत श्याम ग्वालन संग । सुवल : हलधर अरु सुदामा करत नानारंगाहाथ तारीदेत भाजत सबै करि करि होड । वरजै हलधरश्याम तुमजिनि चोट लगिहै गोड ॥ तव करो मैं दौरि जानत बहुतवल मोगातामेरी जोरीहै सुंदामा हाथ मारे जात॥ वोलि तवैउठे श्री सुदामा जाहु तारी मार। आगे हरि पाछे सुदामा धरयोश्याम हंकारि जानिकै मैं रह्यो गढ़ो छुक्त कहा जु मोहिं । सूर हरि खीझत सखासों मनहिं कीनो कोहि।। ८४॥ ॥ राग गौरी ॥ सखा कहतहैं श्याम खिसाने । आपुहि आपु ललकिभये गढे अब तुम कहा रिसाने आपुन हारि सखासों झगरत यह कहि दिये पठाई। सूरश्याम उठिचले रोइकै जननी पूंछति धाई ॥८५ ॥ मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो । मोसों कहत मोलको लीनो तू यशुमति कव जायो । कहा कहौं एहि रिसके मारे खेलन हौं नहिंजातु । पुनि पुनि कहत कौन है माता कोहै तुमरोतातु ॥ गोरेनंद यशोदा गोरी तुमकत श्याम शरीर । चुटुकी दैदै हँसत ग्वाल सब सिखे देत बलवीर ॥ तू मोहीको मारन सीखी दाउहि कबहुँ न खीझै। मोहनको मुख रिस समेतलाख यशुमति सुनि सुनि रो।सुनहु कान्ह वलभद्र चवाई जनमतहीको धूत । सूरश्याम मोगोधनकीसौं हौं मातातू पूतं ॥ ॥ राग नट ॥ मोहन मान मनायो मेरो। मैं बलिहारी नंदनंदनकी नेक इतै हँसि हेरौ ॥ कारो कहि कहि मोहिं खिझावत वरजत खरो अनेरो ॥ आनंद विमल शशिते तनु सुंदर कहाकहै बलिचेरो न्यारोजोपैहठहांकले अपनो न्यारी गइयां तेरी । मेरो सुत सरदार सबनको इहुते कान्है हीभरो। वनमें जाइ करौ कौतूहल इह अपनोहै खेरो। सूरदास द्वारे गावृतहै विमल विमल यशतेरो॥७॥ रागगौरी ॥ खेलन अब मेरी जात बलैया। जवहि मोहिं देखत लरिकन सँग तवहिं खिझत बलभैया। मोसों कहत तात वसुदेवको देवकी तेरी मैया। मोल लियो कछु देवसुदेव को करि करि जतन वटैया ॥ अव वावा कहि कहत नंद सों यशुमतिको कहै मैया। ऐसेही कहि सव मोहिं खिझावत । तव उठि चलो खिसैया ॥ पाछे नंद सुनत, ठगदे हँसत हँसत उर लैया। सूर नंद बलि रामहि धिर- यो मुनि मनहरप कन्हैया ॥ ८ रामकली ॥ खेलन चलिये वाल गोविंद । सखा प्रिय द्वारे बुला 0