(१३०) सूरसागर। || अब जारन कारन दुख विसरावन ॥ मोते कोहो अनाथ दरशनतेभयो सनाथ देखत नैन जुडावन।। भक्त हेत देह धरण पुहुमीको भार हरण जन्म जन्म जन मुकतावन ॥ अशरन शरन दीनबंधु यशु- मति सुखकारन देह धरावन । हितके चितकी मानत सबके जियकी जानत सूरदास प्रभु मनभावन ॥२२॥ विलावल ॥ मैया करिये कृपाल प्रतिपाल संसार उदधि जंजालते पारपारं। काहूके ब्रह्मा काहू के महेश काहूके गणेश प्रभु मेरेतौ तुमहि आधारीदीनदयालु कृपा करि मोको यह कहि कहि लोटत वार वारं। सुरश्याम अंतर्यामी स्वामीहो जगतके कहा कहौं करो निरयारं ॥२३॥ अथमाटीकोमसंग ॥ बिलावल ॥ खेलत श्याम पौरिके वाहर ब्रज लरिका सोहत सँग जोरी । तैसेई आए तैसेई लारका सव अति अज्ञ सवनिमति थोरी ॥ गावत हांक देत किलकारत दुरि देखत नंद रानी । अति पुलकित गद गद मृदुवानी मन मन महरि सिहानी ॥ माटी लै मुख मोले दई। हरि तवाहि यशोदा जानी । साटी लिये दौरि भुज पकरे श्याम लंगर ईटानी ॥ लरिकनको तुम सब दिन झुठवत मोसों कहा कहोगे। मैया में माटी नहिं खाई मुख देख निवहो गे॥ वदन उघारि देखायो त्रिभुवन वन घन नदी सुमेर । नभ शशि रवि मुख भीतरहै सब सागर धरनी फेर ।। यह देखत जननी जिय व्याकुल वालक मुखका आहि । नैन उघारि वदन हार मँच्यो माता मन अवगाहि। झूठेहि लोग लगावत मोको माटी मोहिं न सुहावै । सूरदास तब कहति यशोदा ब्रजलोगन इह भावै ॥२४॥ धनाश्री ॥ मोहन काहेन उगिलो माटी। वार वार अनरुचि उपजावत महार हाथ लिये साटी । महतारीको करो न मानत कपट चतुरई ठाटी । वदन पसारि दिखाइ आपनो नाटककी परिपाटी । वडी वार भई लोचन उपरे भ्रम यामनकी फाटी । सूरदास नंदरानी । भ्रमित भई कहत न मीठी खाटी॥२६॥ रामकली ॥ मोदेखत यशुमति तेरे टोटा अवहीं माटी खाई। इह सुनिकै रिस कार उठि धाई वाह पकरि लैआई । इक करसों भुज गहि गाढे करि इक कर लीने साटी। मारतिहाँ तोहि अवहि कन्हैया वेग न उगलो माटी।बजलरिका सब तेरे आगे झूठी कहत वनाई । मेरे कहे नहीं तूमानत दिखरावो मुख वाई। अखिल ब्रह्मांड खंडकी महिमा देखरायो मुख माही। सिंधु सुमेरु नदी वन पर्वत चकृत भई मनमाही॥ करते साँटि गिरत नहिं जानीभुजा छाडि अकुलानी । सूर कहै यशुमति मुख मूंदहु बलि गई सारगपानी ॥२६॥ राग सारग ॥ नदहि कहति यशोदा रानी । माटीके मिस मुख देखरायो तिहूंलोक रजधानी ।। स्वर्ग पताल धनि वन पर्वत वदन । मांझ रहे आनी। नदी सुमेरु देखि चकृतभई याकी अकथ कहानी ॥ चितै रहे तब नंद युवति मुख मन मन करत विनानी । सूरदास तब कहति यशोदा गर्ग कही यह वानी ॥ २७ ॥ विलावर ॥ कहत नंद यशुमाति सुनु वौरी । नाजनिये कहा तँ देख्यो मेरे कान्ह हिलावति ठोरी ॥ पांच वर्षको मेरो कन्हैया अचरज तेरी वात । वेही काज सांटि लै धावति ता पाछे विललात ॥ कुशल रहें बलराम श्याम दोउ खेलत खात अन्हात । सुरश्यामको कहा लगावति वालक कोमल गात॥२८॥ बिलावल ॥ देखौरे यशुमति वौरानी । घर घर हाथ दियावत डोलत गोद लिये गोपाल विनाती ॥ जानत नाहिं जगत गुरुमाधो यहि आये आपदा नशानी । जाको नाव शक्ति पुनि ताकी ताही देत मंत्र पढि पानी। अखिल ब्रह्मांड उदर गति जाकी जाकीज्योति जल थलहि समानी।सूरसकल सांची मोहि लागत जो कछु कही मुख गर्ग कहानी॥२९॥ धनाश्री ॥ गोपालराइहो चरनन्हि हो काटी। हम अवला रिस वांचि न जानी बहुत लागि गइ साटी ॥ वा करजु कठिन अति कोमल जरहु । नयन निज डाटी। मधु मेवा पकवान छाडिकै काहे खात लाल तुम माटी । सिगरोई दूध पियो -
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