लैकरि तुमहि छपायो कहा कहति यह दोष तुम्हारो॥ अजहुँ कहौ रैहैं हम अनतहि तुम अपनो मंन लेहु। अब पछितानी लोकलाज डर हमहिं छांडि तैं देहु॥ घटती होइ जाहिते अपनी ताको कीजै त्याग। धोखे कियो बास मनभीतर अब समुझे भई जाग॥ मन दीन्हो मोको तब लीन्हों मन लैहों मैं जाउ। सूरश्याम ऐसी जनि कहिये हम यह कही सुभाउ॥५८॥ तुमहि बिना मनधृक अरुधृकघर। तुमहि बिना धृक धृक माता पितु धृकधृक कुलकानि लाजडर॥ धृकसुत पतिधृक जीवन जगको धृक तुमबिन संसार॥ धृक सो दिवस पहर घटिका पल धृक धृक यहकहि नंदकुमार॥ धृक धृक श्रवन कथा विनु हरिके धृक लोचन बिनरूप। सूरदास प्रभु तुम बिनु घर यौवन भीतरके कूप॥५९॥ अथ दानलीला॥ राज्ञीहठीली ॥ सुनि तमचुरको सोर घोषकी वागरी। नवसत साजि श्रृंगारचली बननागरी॥१॥ नवसत साजि श्रृंगार अंग पाटवर सोहै। एकते एक विचित्ररूपत्रिभुवन मनमोहै॥ इंदा बिंदा राधिका श्यामा कामा नारि। ललिता अरु चंद्रावली सखिनमध्य सुकु मारि॥२॥ कोउ दूध कोउ दह्यो मह्यो लैचलीं सयानी। कोउ मटुकी कोउ माट भरी नवनीत मथानी॥ गृह गृहते सब सुंदरी जुरि यमुना तटजाइ। सबनि हरष मनमें कियो उठी श्यामगुणगाइ॥३॥ यह सुनि नंदकुमार सैनदै सखा बोलाए। मन हरषित भए आपु जाइ सब ग्वाल जगाए॥ यह कहिकै तब साँवरे राखे द्रुमंनि चढ़ाइ। और सखा कछु संगलै रोकि रहे मगजाइ॥४॥ येक सखी अवलोकतही सब सखी बोलाई। यहि बनमें इकवार लूटि हम लई कन्हाई॥ तनक फेर फिरिआइए अपने सुखहि विलास। यह झगरो सुनि होइगो गोकुलमें उपहास॥५॥ उलटि चलीं तब सखी तहां कोउ जान नपावै। रोकि रहे सब सखा और बातनि विरमावै। सुबल सखा तब यह कह्यो तुम ग्वालिनि हरियोग। कैसे बित दुरतिहै तुम उनके संयोग॥६॥ किनह श्रृंग कोउ वेनु किनहु बनपत्र बजाये॥ छांडि छांडि द्रुमडार कूदि धरनी धँसिधाये॥ सखिनमध्य इत राधिका सखामध्य बलवीर। झगरो ठान्यो दानको कालिंद्रीके के तीर॥ कहत नंदलाडिलो॥७॥ दैनारिन दधिदान कान्ह ठगढे वृंदाबन । और सखा हरि संग बच्छ चारत अरु गोधन॥ वै बडे नंदके लाडिले तुम वृषभानुकुमारि। दह्यो मह्यो के कारने कतहि बढावति रारि॥ कहत ब्रजनागरी॥८॥ सूधे गोरस मागि कछू लै हमपैखाहू। ऐसे ढीठ गँवार कान्ह बरजत नहिं काहू॥ एहि मग गोरसलै सबै दिन प्रति आवहि जाहि। हमहि छाप देखरावहू दान चहत केहि पाहि। कहत नँदलाडिले॥९॥ इते मान सतरात ग्वारि हम जान नदेहैं। अनउत्तर कहा कहति तुमहि वश कान्ह भयेहैं॥ अब तुम ऐसी जनि करौ या। वृंदावन बीच। पुहुमि माहँ टरकाइहै मचिहै गोरस कीच॥ कहत ब्रजनागरी॥ १०॥ कान्ह अचगरयो देत लेहु सब आंगनवारी। कापहि माँगत दान भए कबते अधिकारी॥ मात पिता जैसे चलैं तैसे चलिये आपु। कठिन कंस मथुरा बसै कोकहि लेइ संतापु॥ कहत नंदलाडिले॥११॥ कहै नजाइ उताल जहां भूपाल तिहारो। हो वृंदावन चंद्र कहा कोउ करै हमारो॥ शेषसहसफन नाथिज्यों सुरपति करे निरंस। अग्नि पान किये सांवरे केतिक वपुरो कंस॥ कहतब्रजनागरी॥१२॥ जाके तुम सुकुमार ताहि हम नकि जाने। जो पूछौ सति भाउ आदि अद्यावलिभानै॥ बातनि बडे नहूजिये सुनहु श्याम उतपाति। गर्भसाटि यशुदा लियो तब तुम आएराति॥ कहत नंदलाडिले॥१३॥ अरी ग्वारि मैमंत वचन बोलत जो अनेरो। कब हरि बालक भए गर्भ कब लियो बसेरो। प्रबल असुर पुहुमी वढे विधि कीन्हे ये ख्याल। कमलकोस अलिभोरए त्यों तुम भुरयो गोपाल। कहत ब्रजनागरी॥१४॥ तुम भुरए हौ नंद कहतहैं तुमसों ठोटा। दधि
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दशमस्कन्ध-१०
