पृष्ठ:सूरसागर.djvu/३६६

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दशमस्कन्ध-१० (२७३) मुरली पर कर मुख नयन एक भए वारे । मनो सरोग विधु वैर विरंचि करि करत नाद वाहन चुचु कारे.॥ उपमा एक अनूपम उपजत कुचित अलक मनोहर भारे। विडरत विझुकि जानि रथते मृग जनु ससंकि शशि लंगर सारे । हरि प्रति अंग विलोकि मानि रुचि बज वनितानि प्राण धनवारे । सूरश्याम मुख निरखि मगन भई यह विचारि चित अनत नटारे ॥ ७३ ॥ सोरठ ॥ हरि मुख निरख तं नैन भुलाने । ये मधुकर रुचिं पंकज लोभी ताहीते न उड़ाने ॥ कुंडल मकर कपोलनकी ढिगं जनु रवि रैनि विहाने । ध्रुव सुंदर नैननि गति निरखत खंजन मीन लजाने ।। अरुण अधर ध्वज कोटि वद्युति शशिगन रूप समाने । कुंचित अलक सिली मुख मानो लै मकरंद निदाने तिलक ललाट कंठ मुकुतावलि भूपन मय मनि साने । सूरदास स्वामी अंग नागर ते गुणजात नजाने.॥ ॥७४ ॥ केदारों ॥ देखिरी नवल नंद किसोर । लकुटसों लपटाइ ठाढे युवति जन मन चोर || चारु लोचन हँसि विलोकनि देखिकै चितभोर । मोहनी मोहन लगावत लटकि मुकुट झकोर ॥ श्रवन ध्वनि सुरनाद मोहत करत हिरदै फोर । सुर अंग त्रिभंग सुंदर छवि निरखि तृण तोर ॥ ७५ ॥ फान्हरी ॥ ब्रजवनिता देखति नंदनंदन । नवधन नील वरन ताऊपर खौर कियो तनु चंदन ॥ कन- कवरन कटि पीत पिछारी उर भाजत वनमाला। निर्मल गगन श्वेत वादर पुर मनो दामिनी जाला। मुक्तामाल विपुल वग पंगति उडत एक भई जोति । सूरझ्याम छवि निरखति युवती हरप. परस्पर होति ॥ ७६ ॥ मूही ॥ प्रातसमय आवत हरि राजत । रवजटित कुंडल सखि श्रवणनि तिनकी किरनि सुरत न लजात ॥ सातै राशि मेलि द्वादशमे कटि. मेखला अलंकृत साजत.। पृथ्वी. मथि पिता सो लेकर मुख समीप मुरली ध्वनि वाजत ।। जलधि तात तीह नाम कंठके किनके पंख मुकुट शिरभाजत । सूरदास कहै सुनहु गूढ हरि भक्तनि भजत अभक्तनि भाजत ॥ ७७ ॥ नट ॥ हरि तन मोहिनी माई । अंग अंग अनंग शत शत वरानि नहिं जाई. ॥ कोऊ निरखि शिर मुकुटकी छवि सुरति विसराई. । कोऊ निरखि विथुरी अलक मुख अधिक सुखदाई । कोऊ निरखि रही भालचंदन एकचित लाई । कोऊ निरखि विथुरी भृकुटिपर नैन डहराई । कोऊ निरखि रही चारुलोचन निमिप भरमाई । सूर प्रभुकी निरखिसोभा कहत नहिं आई ॥ ७८ ॥ सारंग ॥ हरिमुख किधों मोहनीमाई । अवलोकत अपात नहि.मेरे नैना ठगे ठगोरी लाई | कुंडल किरनि निकट भूलोचन आरति मीन हग सम चपलाई.। श्रवनरंध नहि निपुन दास जन काम कुवैनी कलित बनाई ॥ छाजत रदन रदन छंदकी छवि.मंदमाधुरी गिरा सुहाई.। जया कुसुम दल मनहु कमलपर तडिजुथ कोश कोकिला गाई । सबविधि वशीकरनकी वाकी वलितबलाक अनुन बलझाई । सूरदास प्रभु बदन विलोकत.जकित थकित. चित्त अनत नज़ाई ॥ ७९ || गुंडमलार ॥ श्यामसुखराशि रसराशि भारी । रूपकी राशि गुणराशि: यौवन राशि थकितभई निरखि नवतरुनी नारी ।। शीलकीराशि जलराशि आनंदराशि नीलनव जलद छवि बरनकारी । दयाकी राशि विद्याराशि बलराशि, निर्दयराशि. दनुकुल प्रहारी ॥ चतुरई राशि छलराशि कलराशिहरि भजे जेहि हेतु तेहि देनहारी। सुरप्रभु श्याम सुखधाम पूरण काम लसति कटि पीत मुखमुरलिधारी, ॥ बिहागरी । सुंदर बोलत आवत वैन.! ना जानौ, तेहि समय सखीरी सवतन श्रवन किनन ॥ रोम रोम में शब्द सुरतिकी नख शिख ज्यों चयन । येते मान बनी चंचलता सुनी न समुझी सैन । तपतकि जकि ढरही, चित्रसी पल न लगताचितचैन। । सुनहु सूर यह सांचकी संभ्रम, सपन किधौं दिन रैन ॥८॥ मलार ॥ नैना माई भूले अनत न -