पृष्ठ:सूरसागर.djvu/४९२

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दशमस्कन्ध-१० (३९९) सुत लग्यो अधर पर यह छवि कही न जाइ । मनों बंधूक सुमन ऊपर विय अलिसुत बैठे आइ ॥ कुच कुमकुम अवलेप तरुनि किए सोभित श्यामलगात । गत पतंग राका शशि विय संग घटा सघन सोभात ॥ श्याम हृदय छलने ता ऊपर लगी करज कृत रेप । मनहुँ वसंतराज रुचि की रति अरुण किसलतरु भेप ।। कामवाण वर लिए पंच चितवत प्रति अंग अंग लाग । अब न जान गृह देउँ पियारे जर आए तब भाग ॥ तादिनते वृषभानुनंदिनी अनत जान नहिं दीन्हें । सूरदास प्रभु प्रीति पुरातन यहि विधि रस वश कीन्हें ।। ८६ ॥ अथ बहामानसमय । विलावल। सखियन सँग लै राधिका निकसी वजखोरी । चली यमुन स्नानको प्रातहि उठि गोरी ॥ नंद वन जा गृह वसे तेहि वोलन आई । जाइ भई द्वारे खरी तब कढे कन्हाई ॥ औचक भेट भई तहां चकृत भए दोऊ। ये इतते वै उतहिते नहिं जानत कोऊ ॥ फिरी सदनको नागरी सखि निरखत ठगढी । स्नान दानकी सुधि गई अति रिस तनुवाठीझ्याम रहे मुरझाइकै ढग मूरी खाई । ठाढे जहँके तहँ रहे सखियन समुझाई । इतनेहीके है गए गहि बाँह ले आई। सूरज प्रभुको ले तहां राधा दिखराई ॥ रामकली ॥ राधहि श्याम देखी आइ । महामान दृढाय वैठी चिते कापे जाइ ॥ रिसहि रिस भई मगन संदरि श्याम अति अकुलात । चकित जाक रहे ठाढे कहि न आवे वातादेखि व्याकुल नंदनंदन सखी करति विचार । सूर प्रभु दोउ मिले जसे करो सोइ उपचार।।८७) कान्हरी । सखी एक गई मानिनि पास । लखति नहिं कछु भाव ताको मिटी मनकी आस ॥ कहीं कासों कोन सुनिहै रिसनि नारि अचेत । बुद्धि सोचति त्रिया ठाढी नेक नहीं सुचेत ॥ श्याम व्याकुल अतिहि आतुर यहि कियो दृढ़ मानासुर सहचरि कहति राधाबड़ी चतुर सुजान।।८८॥कान्हरोगनिहिं तेरो अतिही हठ नीकोमेिरो को सुनहु वन सुंदरि मान मनायो नागर पियको ॥ सोइ अतिरूप सुलक्षणनारी रीझे जाहि भावतो जीको । प्यासे प्राण जाई जो जलविनु पुनि कह कीजे सिंधु अमीकोतो जू मान तजहुगी भामिनि रविकी रसमि कामफल फीकोकीले कहा समय विनु सुंदरि भोजन पीछे अचवनधीको ॥ मृरस्वरूप गर्व जोवनके जानतिही अपने शिर टीको । जाके उदय अनेक प्रकाशत शशिहि कहा डर कमल कलीको।।८९॥ सारंग ॥ चितयो चपल नेनकी को।मन्मथ वाण दुसह अनियारे निकसे फूटिहिए वहि ओर ।। अति व्याकुल धुकि धराण परे जिमि तरुण तमाल पवनके जोर । कहुँ मुरली कहुँ लकुट मनोहर कहुँ पट कहूँ चंद्रिका मोर ॥ खन वूडत खनहीखन उछलत विरह सिंधुको बढो हिलोर । प्रेम सलिल भीज्यो पीरोपट फल्यो निचोरत अंचल छोर ॥ फुरें न वचन नेन नहिं उपरत मानहुँ कमल भए विनुभोर । सूर सुअधर सुधारस सींचहु मेटहु मुरछा नंद किसोर ॥९०नया राधे तेरे नैन किषों मृगवारोरहत न युगल भौंह युग योते भजत तिलक रथ डारे । यदपि अलक अंजन गहि वांधे तऊ चपल गति न्यारे । धुंघट पट वागरज्यों विड़वत जतन करत शशि हारे । सुटिला युगल नाक मोती मणि मुक्तावलि ग्रीव हारे । दोउ रुख लिये दीपका मानों किये जात उजियारे । मुरलीनाद सुनत कछु धीरज जिय जानत चुचकारे । सूरदास प्रभु रीझिरसिक पिय उमन प्राण धनवारे ॥९॥राधे तेरे नैन किधौरी पान । यो मारै ज्यों मुरछि परे धर क्यों करि राखे प्रान ।। खगपर कमल कमल पर केदलि केदलि पर हरि टान । हरि पर सर सरवर पर कलसा कलसा पर शशिभान । शशिपर विव कोकिला ताविच कीर करत अनुमान ॥ वीच वीच दामिनि दुति उपजत मधुप यूथ असमान ॥तू नागरि सब गुणनि उजागरि पूरण कला निधानासूरश्याम तो दरशन कारण व्याकुल परे अजाना।९२॥ नट ॥राधे तेरे नैन किधौं वटपारे ।