पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५३४

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दशमस्कन्ध-१० (88) इतहि राधिका निकसि यूथते सन्मुख पिय छांडति पिचकारी ॥ इक गोपी गोपाल पकार कर चली आपने मेर उसारी । आजति आँखि मनावति फगुवा हँसति हँसापति दै करतारी । सुर वि मान नभ कौतुक भूले कोटि मनोज जाइ बलिहारी । सूरदास आनंदसिंधु में मगन भए ब्रजके नर नारी॥३४॥काफीमानँदनंदन वृपभानु किसोरी राधा मोहन खेलत होरी। श्रीवृंदावन अतिहि उजा गर परन वरन नवदंपति भोरी|एकन करहै अगर कुमकुमा एकनकर केसरिले घोरी।एक अर्थ सोंभा व दिखावति नाचति तरुनि बाल वृध भोरी ॥ श्यामा उतहि सकल ब्रजवनिता इतहि झ्याम रस रूप लह्योरी। कंचनकी पिचकारी छूटति छिरकति ज्यों सचुपावै गोरी ॥ अतिः ग्वाल दधि गोरस माते गारी देत कहो न करोरी। करत दुहाई नंदराइकी ले जुगयो कलवल छल जोरी ॥ झुंडनि जोरि रही चंद्रावलि गोकुल में कछु खेल मच्योरी। सूरदास प्रभु फगुवा दीनै चिरजीवो राधा बर जोरी॥३६॥श्रीहठी ॥श्यामा परवशपरी हो विकाय मोहनके खेलत रस रह्योहो । खेलन चले करत अतिं तरकै मारत पीक पराइ । पेलि चली यौवन मदमाती अधर सुधारस प्याइ ॥ इत लिए कनक लकुटिया नागरि उत जेरी धरेग्वार । इत है रंग रंगीली राधा उत हैं श्री नंदकुमार ॥१॥ खेलत में रिस नाकार नागार श्यामहि लागी चोट । मोहन है अति माधुरी मूरति राखिये अंचल वोट॥ मारि डगै जव फिरि चली सुंदरि बेनी तुरे शुभ अंग । मनहु चंदके वदनसुधाको उडि उडि लगत भुअंग ॥२॥रंज मुरज डफ झांझ झालरी यंत्र पखावज तार। मदन भेरि अरु राइ गिरी गिरि सुर मंडल झनकार ॥ एक जुआई आन गाँवते सुंदर परम सुजान । यह ढोटा धौं आहि कौनको मारत मनसिज बान ॥३॥ यमुनाकूल मूल बंसीवट गावत गोप धमारि । लैले नाम गाउँ बरसानो देत दिवावत गारि ॥ खेलिफागु मिलिकै मनमोहन फगुवा दियो मँगाय । हरपि त भई सकल ब्रजवनिता सूरदास बलिजाइ॥४॥३६॥ नटनारायण ॥ हो हो हो हो लै लै वोलें। गोरस केरी माते डोलें ॥ व्रजके लरिकनि सँग लिए डोलें। घर घर केरी फरके खोलें।गोपी ग्वाल मिले इक सारी। वचत नहीं बिन दीने गारी॥ आनि अचानक अँखियां मीचैं। चंदन वंदन ऊपर सींचे जो कोइ जाइ रहे घर वैसी । करि परि आइ तहांऊ पैसी ॥ हाथन लिए कनक पिचकारी । तकितकि छिरकत मोहन प्यारी ॥ कुमकुम कीच मची आति भारी । उडत अबीरनरंगी अटारी । अति आनंद भरे सब गावें । नाना गति कौतुक उपजावें ॥ मोहन गहि आने मिलिधाय । फगुवा हमको हेहु मँगाय ॥ भागत कुसुम हार उर टूटे । पीतांवर गोहन दै छूटे ॥ सोभा सिंधु बन्यो अतिभारी। छवि पर कोटि काम बलिहारी ॥ सूरदास प्रभु करि रस होरी ॥ वरणों कहां लगि मोमति थोरी ॥३७॥श्रीहठी ॥ नागरि राधा पै मोहन लेआयहोलोचन ऑजि भाल वेंदीके पुनि पुनि पाँइ परायहो ॥ वेनी ग्रंथि मांग शिरपारचौ वधू वधू कहि गाइहो । प्यारी हँसति देखि मोहन मुख युवती बने बनाइहो ॥ श्याम अंगकुसुमी नई सारी अपने कर पहिरायहोकोउ भुज गहात कहति कछु कोऊ कोउ गहि चिबुक उठाइहोकोउ कपोल छुवै कहति लाल अति कोउ मुख मुखहि मिलाइहो । एक अधर गहि सुभग अँगुरिअन वोलत नहीं कन्हाइहो।नीलांवर गहि खूट चूनरी हँसि हँसि गाठि जुराइहो।युवती हँसति देति करतारी भयो श्या ममन भायहोकनक कलस अरगजा पोरिकै हरिके शिर ढरकायहो । श्रीवृंदावन अद्भुत होरी कहत कही नहि जाइहो।निंदसुनत हँसिमहरि पठाईयशुमति धाई आइहो। पटमें बाँध्यो श्याम छुडायो सूर दास बलिजायहो३८॥विलावलासधिकी उठत झकार मोहन रंगभरे। चोवा चंदन अगरकुमकुमे सोधे