पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५३५

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(४४२) सूरसागर। माठभरे ॥रतन जडित पिचकारी करगहे बालखरे । भरि पिचकारी प्रेमसों डारी सो मेरे प्राणहरे।।। सव सखियन मिलि मारग रोक्यो जब मोहन पकरे । अंजन आंजि दियो आंखिनमें सो हाहाकरि उबरेफगुवा बहुत मँगाइ साँवरे करजोरे अरज करे।धनि धनि भाग सूरप्रभु ताके जाके संग विहरे३९ राज्ञीठोड़ीग्वाल हँसे मुख हेरिकै अति वने कन्हाई।।हलधरकोलिए टेरि आजु अति बने कन्हाई॥होहो करि करि कहतिहै अति वने कन्हाई ॥ रहे चहूंघा हेरि आजु अति बने कन्हाई ॥ ऐसहि चलिए नंदपै अति बने कन्हाई ॥ बलकी सौंह दिवाइ आजु अति वने कन्हाई॥ भुजा गहे तहां लैगए अति बने कन्हाई । वह छवि वरनी नजाइ आज अति वने कन्हाई ॥ इत युवती मन हरतिहै आति वने. कन्हाई॥ उतहि चले को भोर आजु अतिवने कन्हाई ॥ और सखी आई तहां आत वने कन्हाई ॥ करि करि नयन चकोर आजु आति बने कन्हाई ॥ महरहँसे छवि देखिकै अति बने कन्हाई ।। सुनि जननी तहां आय आजु अतिवने कन्हाई ॥ हाँस लीन्हो उरलाइकै अतिवने कन्हाई ॥ आनंद उर नसमाय आजु अतिवने कन्हाई ॥ कछुक खिंझी कछु हँसि कह्यो अति बने कन्हाई ॥ किन यह कीन्हो हाल आजु अतिवने कन्हाई ॥ लेति वलैया वारिकै अतिवने कन्हाई॥ ए ऐसिय ब्रजवाल आजु आति वने कन्हाई ॥ रंगरंग पहिरावनि दई आतिवने कन्हाई ॥ युवतिन महर बुलाय आजु अति बने कन्हाई ॥ यह सुख प्रभुको देखिकै अतिवने कन्हाई ॥ सूरदास बाल जाइ आजु अति बने कन्हाई ॥४०॥ रागकल्याण ॥ ब्रजराज लडैतो गायहो मनमोहन जाको नाउँ । खेलत फाग सुहागवनी रंग भीजि रह्यो सबगाउँ ॥ ताल पखवाज वाजहीहो डफ. सहनाई भेरे । श्रवण सुनति सब सुंदरीवै झुंडन आयहो घेरे ॥ इतहि गोप सब राजहीं हो.उत सब गोकुल नारि । अति मीठी मन भावती हो वै देहि परस्पर गारि॥ चोवा चंदन छिरकहीं हो उड़त अवीर गुलाल । मुदित परस्पर खेलही हो हो हो हो लै वोलत ग्वाल ॥ सब गोपिन मिलि | हलधर पकरे छाँडे पाँइ लगाइ। दाऊ आज भले वने जू आए आंखि अँजाइ ॥ बहुरि सिमटि ब्रजसुंदरी मिलि पकरे गोकुलनाथ । नव कुमकुम मुख माँडिक रचि वेनी गूंथी हो माथ ॥ तव नंदरानी वीच कियो बहु मेवा दिये मँगाय । पटभूषण पहिराइ सवनको निरखि सूर वाल जाइ ॥४॥रागगौरी। ग्वालिनि जोवन गर्व गहेली । राधे के सँग कदम सहेली॥१॥कुमकुम उवटि कनक तनु गोरी । अंग सुगंध चढाय किसोरी॥ दक्षिण चीर तिपा को लहँगा । पहिार विविध पट मोलन. । महँगा ॥२॥ कुँवरी कुसुम मांग मोतिअन मनु । केसरि आड लिलाट भ्रुकुटि धनु । कज्जल रेख. नैन अनिआरे । खंजन मीन मधुप मृग हारे॥३॥ श्रवणन कुंडल रवि सम ज्योती । नकवेसरि लटक गजमोती॥ दशन अनार अधर विव जानो। चिबुक चारु मूंद्यो मधु मानो ॥ ४॥ कंठ कपोत मुक्तावलि हार । जनु युग गिरि विच सुरसरी धार॥ कुच चकवा मुख शशि भ्रम भूलो. बैठे विधुरि दुहूँ अनुकूले ॥५॥करकंकण चूरो गजदंती । नख मणि माणिक मेटति दंती ॥... नाभि हृदय तनु हाटक वरनी । कटिं मृगराज नितंविनि तरनी ॥ ६॥ कदली जंघ चरण कल ...नूपुर । गवन मराल करत धरणी पर ।। भूषण अंग सजे सत नोरी गावति फागु नंदकी पौरी॥७॥ । आलियसवक्षः प्रमदशुभवनं कुंकुमोद्भूतरागैस्तेमौलौकिरीटमणिगुणरचितेकुंडलेकर्णयोतः ॥ गौरांगः शुक्लवासाःकमलकरत लेतालतूय॑द्विवयं धुंधंधीधीतियुष्मान् मुरजभवरसः पातुवेलावलोयम् ॥ विलावल . वीणावामकरायकेण्द्धतीतालौतथादक्षिणे, मुक्ताहारललाटमध्यतिलकनेत्रालयेकज्जलम् ॥ लेपचंदनकर्दमेनरचितंचित्रांवरनूपुरौ । तांबूलंकरमोहिनीचमसष्टोडीचमुक्तावली ॥ राज्ञीटोडी ॥ - -