माठभरे॥ रतन जडित पिचकारी करगहे बालखरे। भरि पिचकारी प्रेमसों डारी सो मेरे प्राणहरे॥ सब सखियन मिलि मारग रोक्यो जब मोहन पकरे। अंजन आंजि दियो आंखिनमें सो हाहाकरि उबरे॥ फगुवा बहुत मँगाइ साँवरे करजोरे अरज करे। धनि धनि भाग सूरप्रभु ताके जाके संग विहरे॥३९॥
राज्ञीठोड़ी ॥ ग्वाल हँसे मुख हेरिकै अति बने कन्हाई॥ हलधर कोलिए टेरि आजु अति बने कन्हाई॥ होहो करि करि कहतिहै अति बने कन्हाई॥ रहे चहूंघा हेरि आजु अति बने कन्हाई॥ ऐसहि चलिए नंदपै अति बने कन्हाई॥ बलकी सौंह दिवाइ आजु अति बने कन्हाई॥ भुजा गहे तहां लैगए अति बने कन्हाई॥ वह छबि वरनी नजाइ आजु अति बने कन्हाई॥ इत युवती मन हरतिहै आति बने कन्हाई॥ उतहि चले कौ भोर आजु अतिबने कन्हाई॥ और सखी आई तहां अति बने कन्हाई॥ करि करि नयन चकोर आजु आति बने कन्हाई॥ महरहँसे छबि देखिकै अति बने कन्हाई॥ सुनि जननी तहां आय आजु अतिबने कन्हाई॥ हँसि लीन्हो उरलाइकै अतिबने कन्हाई॥ आनँद उर
नसमाय आजु अतिबने कन्हाई॥ कछुक खिंझी कछु हँसि कह्यो अति बने कन्हाई॥ किन यह कीन्हो हाल आजु अतिबने कन्हाई॥ लेति बलैया वारिकै अतिबने कन्हाई॥ ए ऐसिय ब्रजबाल आजु आति बने कन्हाई॥ रंगरंग पहिराबनि दई आतिबने कन्हाई॥ युवतिन महर बुलाय आजु अति बने कन्हाई॥ यह सुख प्रभुको देखिकै अतिबने कन्हाई॥ सूरदास बलिजाइ आजु अति बने कन्हाई॥४०॥ रागकल्याण ॥ ब्रजराज लडैतो गायहो मनमोहन जाको
नाउँ। खेलत फाग सुहागवनी रंग भीजि रह्यो सबगाउँ॥ ताल पखवाज बाजहीहो डफ सहनाई भेरे। श्रवण सुनति सब सुंदरी वै झुंडन आयहो घेरे॥ इतहि गोप सब राजहीं हो उत सब गोकुल नारि। अति मीठी मन भावती हो वै देहिं परस्पर गारि॥ चोवा चंदन छिरकहीं हो उड़त अबीर गुलाल। मुदित परस्पर खेलही हो हो हो हो लै बोलत ग्वाल॥ सब गोपिन मिलि हलधर पकरे छाँडे पाँइ लगाइ। दाऊ आजु भले बने जू आए आंखि अँजाइ॥ बहुरि सिमटि
ब्रजसुंदरी मिलि पकरे गोकुलनाथ। नव कुमकुम मुख माँडिकै रचि बेनी गूंथी हो माथ॥ तब नंदरानी बीच कियो बहु मेवा दिये मँगाय। पटभूषण पहिराइ सबनको निरखि सूर बिल जाइ॥४१॥ रागगौरी ॥ ग्वालिनि जोबन गर्व गहेली। राधे के सँग कदम सहेली॥१॥ कुमकुम उवटि कनक तनु गोरी। अंग सुगंध चढाय किसोरी॥ दक्षिण चीर तिपा को लहँगा। पहिरि विविध पट मोलन महँगा॥२॥ कुँवरी कुसुम मांग मोतिअन मनु। केसरि आड लिलाट भ्रुकुटि धनु॥ कज्जल रेख नैन अनिआरे। खंजन मीन मधुप मृग हारे॥३॥ श्रवणन कुंडल रवि सम ज्योती। नकवेसरि लटकै गजमोती॥ दशन अनार अधर बिंब जानो। चिबुक चारु मूंद्यो मधु मानो॥४॥ कंठ कपोत मुक्तावलि हार। जनु युग गिरि बिच सुरसरी धार॥ कुच चकवा मुख शशि भ्रम भूल। बैठे विधुरि दुहूँ अनुकूले॥५॥ करकंकण चूरो गजदंती। नख मणि माणिक मेटति दंती॥ नाभि हृदय तनु हाटक वरनी। कटि मृगराज नितंविनि तरनी॥६॥ कदली जंघ चरण कल नूपुर। गवन मराल करत धरणी पर॥ भूषण अंग सजे सत नोरी। गावति फागु नंदकी पौरी॥७॥
आलिप्तंयस्यवक्षः प्रमदशुभवनंकुंकुमोद्भूतरागैस्तेमौलौकिरीटंमणि गुणरचितेकुंडलेकर्णयोःतः॥ गौरांगः शुक्लवासाःकमलकरत लेतालतूर्य्यद्विवयं धृंधृंधीधीतियुष्मान् मुरजभवरसः पातुवेलावलोयम्॥ बिलावल वीणावामकराग्रकेण्दधतीतालौतथादक्षिणे मुक्ताहारललाटमध्यतिलकंनेत्रालयेकज्जलम्॥ लेपंचंदनकर्दमेनरचितंचित्रांवरंनूपुरौ। तांबूलंकरमोहिनीचमनसष्टोडीचमुक्तावली॥ राज्ञीटोडी॥