सुनि सुंदर वर बाहिर आए। हलधर ग्वाल गोपाल बोलाए॥ इकतन ग्वाल एकतन नारी। खेल मच्यो ब्रजके विचभारी॥८॥ कुमकुम चंदन अरगजा घोरी। हाथन पिचकारी लैदौरी॥ गोपी गोप भए झकझोरे। अंचल गांठि परस्पर जोरे॥९॥ उड़त गुलाल अरुन भए अंमर। कुमकुम कीच मची धरणी पर॥ चंग मृदंग बांसुरी बाजे। पकरत एक एक भरि भ्राजै॥९॥ राधा मिलि इक मंत्र उपायो। हलधर अपनी भीर बुलायो॥ कानलागि श्यामहि समुझायो। संकर्षण गहि श्यामहि ल्यायो॥१०॥ हार जूके हाथ गहे चंद्रावलि। कज्जल लै आई संझावलि॥ ललिता लोचन आंजन लागी। चंद्रावलि मुरली लै भागी॥११॥ इक लै लावति हृदय कपोलनि। इक लै पोंछति ललित पटोलनि॥ इक अवलंबन इक अवलोकित। चुंबन दान देति इक दंपति॥१२॥ मगन भई अषु वषु न सँभारति। लालन भुज अपने उर धारति॥ गुरुजन संत सबै मिलि देखे। तिनहुँको तरुनी तृण वर लेखे॥ १३॥ एक कहै पियको मुख माडौ। एक कहै फगुवा लै छाडौ। बाम लियो पटपति छुडाई॥ राधा राखति कृष्ण बडाई॥१४॥॥१४॥ सिमटे सखा छोडावन आए। उन लियो ढेल न मोहन पाए॥ बाँसन मार मची कल आडे। ग्वालटिके पग एक न छांडे॥१५॥ बल कियो बीच ग्वाल समुझाए। मोहन मेवा मोल मँगाए॥ फगुवालै लालन छिटकाए। हँसत गोपाल ग्वाल तहां आए॥१६॥ तब मोहन हलधर पकराए। करहु तरुनि अपने मनभाए॥ नाक नयन मुख कज्जल लायो। केसरि कलस हलधर शिरनायो॥१७॥ बहुत भरे बलराम सबन गहि। धौलागिरि मानो धातु चली बहि॥ न्हान चले यमुनाके कूल। गोपी गोप भए अनुकूल॥१८॥ जोरस बाढ्यो खेलत होरी। शारदका वरणै मति भोरी॥ सूरदास सो कैसे गावै। लीलासिंधु पार नहिं पावै॥१९॥४२॥ गौरी ॥ गारी होरी देत दिवावत। ब्रजमें फिरत गोपिकन गावत॥ दूध दहीके माते डोलै। काहेन हो हो हो हो बोले। बगलनमें दाबे पिचकारी। बाँधत फेटैं पाग सँवारी। रुकि गए वाटनि नारे पैडे। नवकेसरिके माट उलैडे। छज्जनते छूटति पिचकारी। रँगि गई वाखरि महल अटारी॥ नानारंग गए रँगि बागे। बलदाऊ इतरत ह्वै भागे॥ न्हान चले यमुनाके तीर। मनमोहन हलधर दोउ वीर॥ सूरदास प्रभु सब सुखदायका॥ दुर्लभ रूप देखिवे लायका॥४३॥ रागिनी श्रीहठी ॥ ऋतु वसंतके आगमहि मिलि झूमकहो। सुखसदन मदनको जोर मिलि झूमकहो॥४३॥ कोकिल वचन सोहावनो मिलि झूमकहो। हित गावत चातक मोर मिलि झूमकहो। वृंदावन तरुतमाल मिलि झूमकहो।
सब फूलि रहीं बनराय मिलि झूमकहो॥२॥ जहां नेवारी सेवती मिलि झूमकहो। बहु पाडर विपुल गंभीर मिलि झूमकहो॥ खूझो मरवो मोगरो मिलि झूमकहो। कुल केतकी करनि करील मिलि झूमकहो॥३॥ बेलि चमेली माधवी मिलि झूमकहो। मृदु मंजुल वकुल तमाल मिलि झूमकहो॥ नववल्ली रस विलसही मिलि झूमकहो। मनो मुदित मधुपकी माल मिलि झूमकहो॥४॥ ताल पखावज बाजही मिलि झूमकहो। बिच डफ मुरलीकी घोर मिलि झूमकहो॥ चलहु तहां
आली जाइए मिलि झूमकहो। जहाँ खेलत नंद किसोर मिलि झूमकहो॥५॥ यूथनि यूथनि सुंदरी मिलि झूमकहो। जिनि जोवत लजत अनंग मिलि झूमकहो॥ चोवा चंदन अरगजा मिलि झूमकहो। मथिलै निकसी एक संग मिलि झूमकहो॥६॥ प्रति अँग भूषण साजिकै मिलि झूमकहो। लिये कनक कलस भरि रंग मिलि झूमकहो॥ जाइ परस्पर छिरकहीं मिलि झूम
मुक्तारत्नसुवर्णवद्भरचितसिंहासनेसंस्थितरछत्रंशोभितमन्तकेपरिजनैः संवीज्यतेचामरैः॥ तांबूलंवदनेसुगंधितवषुः कठेषुमुक्तावली कल्याणोविशदांशुकः कमलदृक्कल्याणदोभूभुजाम्॥१॥ रागकल्याण॥