पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५३६

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दशमस्कन्ध-१० (४३) - - मुनि सुंदर वर वाहिर आए । हलधर ग्वाल गोपाल बोलाए ॥ इकतन ग्वाल एकतन नारी । खेल मच्यो ब्रजके विचभारी ॥ ८॥ कुमकुम चंदन अरगजा पोरी । हाथन पिचकारी लदौरी ॥ गोपी गोप भए झकझोरे । अंचल गांठि परस्पर जोरे ॥९॥ उड़त गुलाल अरुन भए अमर । कुमकुम कीच मची धरणी पर ॥ चंग मृदंग वांसुरी वाजे । पकरत एक एक भरि भ्राज॥९॥ राधा मिलि इक मंत्र उपायो। हलधर अपनी भीर बुलायो॥ कानलागि श्यामहि समु झायो । संकर्षण गहि श्यामहि ल्यायो॥ १०॥ हार लूके हाथ गहे चंद्रावलि । कजल लै आई सं झावलि ॥ ललिता लोचन आंजन लागी । चंद्रावलि मुरली ले भागी ॥११॥ इक लै लावति हृद य कपोलनि । इक लै पोंछति ललित पटोलनि ॥ इक अवलंबन इक अवलोकित । चुंबन दान देति इक दंपति।।१२||मगन भई अपु वपुन सँभारति। लालन भुज अपने उर धारति।गुरुजन संत सबै मिलि देखे । तिनहुँको तरुनी तृण वर लेखे ॥ १३ ॥ एक कहै पियको मुख माडौ। एक कहे फगुवा लै छाडौ । वाम लियो पटपति छुडाई ॥ राधा राखति कृष्ण बडाई ॥१४॥ ॥ १४ ॥ सिमटे सखा छोडावन आए । उन लियो ढेल न मोहन पाए । वाँसन मार मची कल आडे । ग्वालटिके पग एक न छांडे ॥ १५ ॥ बल कियो वीच ग्वाल समुझाए । मोहन मेवा मोल मँगाए । फगुवाले लालन छिटकाए । हँसत गोपाल ग्वाल तहां आए ॥ १६॥ तब मोहन हलधर पकराए। करहु तरुनि अपने मनभाए। नाक नयन मुख कजल लायो । केसरि कलस हलधर शिरनायो ।। १७॥ बहुत भरे वलराम सवन गहि । धौलागिरि मानो धातु चली बहि ॥ न्हान चले यमुनाके कूल । गोपी गोप भए अनुकूल ॥ १८ ॥ जोरस वाघ्यो खेलत होरी। शारदका वरण मति भोरी।सूरदास सो कैसे गावै । लीलासिंधु पार नहिं पावै ॥१९॥४२॥ गौरी ॥ गारी होरी देत दिवावत बिजमें फिरत गोपिकन गावत।।दूध दहीके माते डॉले। काहेन हो हो हो हो बोले । वगलनमें दावे पिचकारी । वाँधत फेटें पाग सँवारी । रुकि गए वादनि नारे पेंडे । नवकेसरिके माट उलेडे । छजनते छूटति पिचकारी । राँगे गई वासरि महल अटारी ॥ नानारंग गए रॅगि वागे । बलदाऊ इतरत लै भागे ॥ न्हान चले यमुनाके तीर । मनमोहन हल- घर दोउ वीरसुरदास प्रभु सब सुखदायका दुर्लभ रूप देखिवे लायका॥४३॥ रागिनी श्रीहठी ॥ऋतु वसंतके आगमहि मिाल झुमकहो।सुखसदन मदनको जोर मिलि झूमकहो।।।कोकिल वचन सोहा वनो मिलि झूमकहोहित गावत चातक मोर मिलि झूमकहो।वृंदावन तरुतमाल मिलि झुमकहो। सव फूलि रहीं वनराय मिलि झूमकहो।।२।।जहां नेवारी सेवती मिलि झुमकहो । बहु पाडर विपुल गंभीर मिलि झुमकहो । सूझो मरवो मोगरो मिलि झुमकहो । कुल केतकी करनि करील मिलि झूमकहो ॥ ३ वेलि चमेली माधवी मिलि झूमकहो । मृदु मंजुल वकुल तमाल मिलि झूम कहो । नववल्ली रस विलसही मिलि झूमकहो । मनो मुदित मधुपकी माल मिलि झुमकहो ॥१॥ ताल पखावज वाजही मिलि झूमकहो । विच डफ मुरलीकी घोर मिलि झुमकहो । चलहु तहां आली जाइए मिलि झुमकहो । जहाँ खेलत नंद किसोर मिलि झूमकहो ॥६॥ यूथनि यूथनि सुंदरी मिलि झुमकहो । जिनि जोवत लजत अनंग मिलि झुमकहो ।। चोवा चंदन अरगजा मिलि झुम कहो । मथिले निकसी एक संग मिलि झूमकहो।।६॥ प्रति अँग भूपण साजिकै मिलि झुम कहो । लिये कनक कलस भरि रंग मिलि झूमकहो ॥ जाइ परस्पर छिरकहीं मिलि झुम मुकारग्नमुवर्णवाचितसिंहामने स्थितपत्रंशोभितमन्तकेपरिननः संवान्यतेचामरैः ॥ तांबूलंवदनसुगंधितवपुः कठेषुमुक्तावली कल्याणोविशदांशुकः कमलकल्याणदोभूभुजाम् ॥ १॥ रागकल्याण ॥ % 3E - - - -