पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५४०

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दशमस्कन्ध-१० (१७) झक झोरी ॥ राधा सहित चंद्रावलि दौरी । औचक लीनी पीत पिछौरी ॥ ४ ॥ देखतिही लेगई ।। अजोरी। डारिंगई शिरश्याम ठगोरी ॥ ग्वालदेत होरीकी गारी । वैर कियो हमसों तुम भारी॥६॥ हँसति परस्पर योवनवोरी । ले आई हरि पीत पिछोरी । पात करति मन मुरली कोरी । अधरन ते नाहिं ढारत जोरी ॥६॥ भली करी सब हम तुम सोरी सावधान अब होहु कटोरी ॥ श्याम चितै राधा मुख ओरी । नैन चकोर चंद्र दरश्योरी ॥ ७ ॥ पियको प्रिय मोहनी लगाय । इहि अंतर गोपी हॉस धाय ॥ गह्यो हरपि भुज ललिता धाय । गई श्यामकी सब चतुराय ॥ ८॥ मनमाने सब करति बड़ाय । राधा मोहन गाँठि जुराय ॥ करत सबै रुचिकी पहुनाय । नंदमहरको गारी गाइ ॥ ९॥ फगुवा हमको देहु दिवाय । पचरंगसारी बहुत मँगाय ॥ लीन्दी जो जाके मन आय । तुरत सबै युवती पहिराय ॥ १० ॥ खेलत फागु रह्यो रसभारी । वृद्ध किसोरि वाल अरु नारी॥अति श्रम जानि गए जलतीराग्विाल ग्वालि हलधर हरि वीरा।।परम पुनीत यमुनजल रासी ॥ क्रीडत जहां ब्रह्म अविनासी ॥ धन्य धन्य सब व्रजके वासी । विहरतहें हरि सँग करि हांसी ॥१२॥ जलक्रीडात रुणिन मिलि कीनो । ब्रज नर नारिनको सुख दीनो॥कार स्नान चले ब्रजधाम । करे सबनके पूरण काम ॥ १३ ॥ जो सुख नंद यशोदा पायो । सो सुख नाहीं प्रगट वतायो । सुरवनितन यह साध विचारें। कैसे हरि सँग हमहु विहारै ॥ १४॥ धन्य धन्य ए ब्रजकी वाला । धन्य धन्य गोकुलके ग्वाला ॥ सूरझ्याम जनके सुखदायक । भुव प्रगटे हरि हलधर भायक ॥ १५॥५३॥ गौरी ॥ कछु दिन ब्रज औरो रहो हरि होरीहै। अब जिनि मथुरा जाहु अहो हरि होरी है ॥ ३॥ सब सुखको फल फागु अहो हार होरीहै ।। प्रगट करो यह जानिकै हरि होरी है । अंतरको अनुराग अहो हरि होरी है ॥२॥ गनह द्विज दिन शो धिक हरि होरी है। भूपति हे काम अहो हार होरी है। शशि रेखा शिर तिलक दे हरि होरी है। सवकोऊ कर प्रणाम अहो हरि होरी है ॥३॥ कनक सिंहासन बैंठिह हरि होरी है।युवतिन के उर | आनि अहो हार होरी है ।। बूंवट आत पतानि अहो हरि होरी है।शातीज तिहूं दिश प्रगट है हार होरी है।अपनी आनन रेख अहो हार होरी है।मुनि पग मग डफ डिमि डिमी हरि होरी है।सोइकार हैं सब देश अहो हार होरी है ॥५॥चौथि चहूं दिश जानिहै हार होरीहै । यह अपनी इकरीति अहो हार होरी है। मैं जो कहो पिय निजल हो हार होरी है।छाडि सकुच कुलनीति अहो हार होरी हे६ पांच परमिति परिहरै हरि होरी है । चली सकल इकचाल अहो हरि होरी है।नारि पुरुप सादर कर हरि होरी है।वचन प्रीति प्रतिपालि अहो हरि होरी है।छठि छरागरसरागिनी हरि होरी है। ताल तान बंधान अहो हरि होरी है।चटुल चारु रतिनाथक हार होरी है।सीखत होइ औधान अहो हरि होरी है ॥ ८॥ सुनि वातें सब सजग होइ हरि होरी है । सबन मतो मतो एक अहो हरि होरी है ।। नृप जो कहो सब कोट कर हार होरी है। कोराखि है विवेक अहो हार होरी है ॥ ९॥ आ मुनि सब सजि भए हरि होरी है। रानाकी रुचि जानि अहो हरि होरी है । करहु क्रिया ते सी सबै हार होरी है। आयसमाथे मानि अहो हार होरी है ।।१०। नौमी नवसत साजिकै हरि होरी है । उर सुगंध उपहार अहो हार होरी है ॥ मनहु चली है मायके हरि होरीहैं। मनसिज भवन जोहार अहो हार होरी है ॥ ११॥ दशै दशै दिशि शोधिक हरि होहि । बोलेहो नाराय अहो हरि होरी है ॥ काज करहु रुचि आफ्नी हरि होरी है । आवहु काज सिराय अहो हरि होरी है ।। १२॥ मुनि आयसु एकादशी हरि होरी है । बोले सब शिरनाइ अहो