पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५४१

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सूरसागर। . . (४४८) हरि होरी है ॥ गजजीतहु बल आपने हरि होरीहै । ज्ञान वैराग ठंडाय अहो हरि होरी है ॥ १३॥ देखि भले सुभट आपने हरि होरी है । दियो द्वादशघोष विचारि अहो हार होरीहै । करहु क्रिया तैसी सबै हरि होरी है। होइ निशंक नर नारि अहो हार होरी है ॥ १४॥ ढोल भेरि डफ पांसुरी हरि होरी है। वाजै पटह निसान अहो हरि होरी है ॥ मिलहु लोकपति छाँडिक हरि होरी है। नाहिं उवरिवो निदान अहो हरि होरी है ॥ १६ ॥ रथ औचक वरात साजै हरि होरीहै । खरन भए असवार अहो हरि होरी है। धूरि धातु रंग घट भरे हरि होरी है । धरे यंत्र हथियार अहो हरि हो राहै ॥१६॥ जहां तहां सैन्याचली अहो हरि होरीहै । मुक्तकाछ शिरकेश अहो हरि होरी है|आपौ पर समुझे नहीं हरि होरी है। राजा रंक अवेस अहो हरि होरी है ॥ १७॥जे कवहं देखे नहीं हरि होरी है। कबहुँ न सुनी न कान अहो हरि होरी है ॥ तिन्ह कुलनारि निडरभई हरि होरी है। लागे लोग परान अहो हरि होरी है ॥ १८॥ भस्मभरै अंजन करें हरि होरी है। छिरक चंदन वारि अहो हरि होरी है ॥ मर्यादा राब नहीं हरि होरी है । कटिपट लेहिं उतरि अहो हरि होरी है । १९॥ जहां सुनहिं तप संयमी हरि होरी है । धर्म धीर आचार अहो हरि होरीहै ॥ छेकहिं नहीं निशंक होइ हरि होरी है। पकरहिं तोरि किंवार अहो हरि होरी है ॥२०॥शठ पंडित वेश्यावधू हरि होरी है। सब निकसी एकै सारि अहो हरि होरीहै ॥ तेरसि चौदास दिवस द्वै हरि होरी है। जबजीते जगझारि अहो हरि होरी है ॥२१॥ पून्यो प्रगटी प्राणपति हरि होरी है । दुरे मिले पा लागि अहो हरि होरी है। जहां तहां होरी जरै हरि होरी है । मनहुँ मवासे आगि अहो हरि होरी है ॥२२॥ सब नाचाहिं गावहिं सबै हरि होरी है । सबै उडावाहं छार अहो हरि हारी है। साधु असाधुन समुझहीं हरि होरीहै । बोलहिं वचन विकार अहो हरि होरी है ।। २३॥ अति अनीति मितिदेखि कै हरि होरीहै । परिवा प्रगटी आनि अहो हरि होरी है ॥ विमल बसन तनु साजहीं हरिहोरी है। मर्यादाकी कानि अहो हरि होरी है ॥२४॥ आवतही आदर करैं हरिहोरी है । हसि जोराहिँ उठि हाथ अहो हरिहोरी है । वरन धर्म मिति राखही हरि होरी है। कृपाकरौ रतिनाथ अहो हरि होरी है ॥ २५ ॥ सुनि विनती ऋतुराजकी हरि होरी है । प्रभु समुझे मनमाहँ अहो हरि होरी है ॥ जाय धर्म अपने रहो हरि होरी है । वसो हमारी बाँह अहो हरि होरी है ॥ २६ ॥ और कहां लौं बरनिए हरि होरी है । मनसिज के गुणग्राम अहो हरि होरीहै ॥ सुनहु झ्याम या मासमें हरि होरीहै । किये जु कारण काम अहो हरि. होरीहै ॥२७॥ सूररसिक मणि राधिका हरि होरीहै । कहि गिरिधरसों बात अहो हार होरीहै ॥ श्याम कृपा करि ब्रजरही हरि होरीहै । वरजति मधुवन जात अहो हरि होरीहै. ॥२८॥५३॥ ॥ राग जयजयवंती ॥ माई फूले फूले हो फूलत श्रीराधे कृष्ण झूलत सरसरसही फूलडोल । फूले फूले फूल जोरत फूले निमिषनहीं मोरत संतन हितही फूल डोल ॥१॥ फूल स्फटिक खंभ रचित कंचनही फूल खचित सरस रही फूल डोल । पटुली नवरतन पचित हीरालाल मोती फूल जटित संतन हितही फूल डोल ॥२॥ मरुवा मयारि सुठि टरिरोल प्रवाल पिरोजा झुमका चहुँ ओल सरस रसही फूल डोल । डाँडी हेम होने चारु गोल चुनी नहीं फूल लगे लोल संतन हितकी फूल डोल ॥३॥ फूले श्रीवृंदावन अनुकूल सघनलता सव फूले फूल सरस रसही फूल डोल। फूले श्रीयमुनाकूल विविध तरंगरंग फूले फूल संतन हितही फूलडोल ॥ ४॥ फूलहीन चंपक चारु चमेली फूले मलयज लवंगलता बेलि सरस रसही फूल डोल । फूले वेल निवारी-फूल. -